सम-सामयिक

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की फिक्र

 

प्रबुद्ध वर्ग का देश और देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं के विषय में फिक्र करना अच्छी बात है। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशांे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखा है। इस पत्र मंे सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने आशंका जतायी है कि न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है। इन न्यायाधीशों ने उन घटनाओं का जिक्र नहीं किया जिनके आधार पर कहा जा सके कि न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है। पूर्व न्यायाधीशों ने संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ का जिक्र जरूर किया है। सामान्य जनता की नजर मंे पूर्व न्यायाधीशों का यह पत्र सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के बीच वाक्युद्ध से जुड़ा है। इसलिए सियासत की बू आती है। हालांकि देश की जनता इस बात से आश्वस्त है कि देश का प्रधान न्यायाधीश अपने आप मंे न सिर्फ पूर्ण सक्षम है बल्कि अपने विवेक का भरपूर उपयोग भी करता है। कोर्ट मंे जूनियर वकीलों के लिए स्कूल की व्यवस्था करना इसका ताजा उदाहरण है। फाइलों के निपटारे मंे भी सीजेआई का चैम्बर एक आदर्श उदाहरण है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ यह कहते भी हैं कि उनका दायित्व जनता की सेवा करना है। कोई आधी रात को भी बुलाएगा तो वह हाजिर मिलेंगे। इसलिए पूर्व न्यायाधीशों को तब तक चिंता करने की जरूरत नहीं है, जब तक सीजेआई की कुर्सी पर डीवाई चंद्रचूड़ बैठे हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ के कई कदम अनुकरणीय माने जाते हैं। औद्योगिक शराब और नशीली शराब को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों के संविधान पीठ में चल रही बहस को अचानक सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने रोक दिया था। केंद्र की ओर से दलीलें दे रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को बीच में रोक कर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि आपके युवा जूनियर वकील हर दिन लैपटॉप लेकर खड़े रहते हैं । मैंने कोर्ट मास्टर को कहा है कि वो लंच के समय आपके पीछे स्टूल आदि लगा दें ताकि वो भी बैठ सकें। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि वो भी ये देख रहे हैं। उन्होंने कोर्ट रूम में बैठे वकीलों से आग्रह किया कि जो इस केस से जुड़े नहीं हैं वो इन वकीलों के लिए कुर्सी खाली कर सकते हैं लेकिन लंच के बाद जब अदालत में फिर से मामले की सुनवाई हुई तो सब हैरान रह गए। कोर्टरूम में बकायदा इन वकीलों के लिए स्टूल लगाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक लंच के समय सीजेआई चंद्रचूड़ ने सबसे पहले इन युवा वकीलों के बैठने के लिए इंतजाम करने के निर्देश दिए ।

इतना ही नहीं स्टूल लगाने के बाद कोर्ट शुरु होने सो पहले ही सीजेआई डॉयस की बजाए पहले कोर्टरूम में वकीलों की जगह पर पहुंच गए। उन्होंने खुद ही पहले इन स्टूल पर बैठकर देखा कि इन युवा वकीलों को इन पर बैठने में किसी तरह की दिक्कत तो नहीं होगी। वो ठीक तरीके से कोर्ट कार्रवाई को देख पाएंगे या नहीं। साथ ही सोलिसिटर जनरल मेहता की केस में सहायता में कोई दिक्कत तो नहीं होगी। इस मुद्दे का जिक्र करते हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था सीजेआई उदारता के प्रतीक हैं। आज का कदम न केवल अभूतपूर्व है बल्कि सभी अदालतों द्वारा इसका पालन करने की आवश्यकता है। न्यायिक पदानुक्रम के सर्वोच्च पद पर बैठा एक व्यक्ति बिना किसी के बताए भी युवा वकीलों की परेशानी के प्रति इतना असाधारण रूप से विचारशील है, यह सलाम के योग्य है ।आज सभी युवा वकीलों के पास आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे। मैं अभिभूत हूं।

देश की न्यायपालिका के मुखिया सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ कैसे काम करते हैं। ये जानने की उत्सुकता सभी में रहती है। अदालती कामकाज के खत्म होने के बाद एक न्यूज चैनल को चैंबर में जाने की इजाजत मिली थी। उसके अनुसार वैसे मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ महत्वपूर्ण मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान कोर्ट रूम में बैठते हैं, लेकिन वह चैंबर जहां से वह दिन-प्रतिदिन के अदालती मामलों से जुड़े काम करते हैं, स्क्रीन के पीछे रहता है। टीवी पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार देश के मुख्य न्यायाधीश के चैंबर में कैमरे के साथ जाने की इजाजत मिली थी, जहां से दिखाया गया कि वे अपना काम वहां कैसे करते हैं। उस समय चैंबर के भीतर डीवाई चंद्रचूड़ अपने काम में लगे थे। पेपरलेस और डिजिटल कोर्ट की वकालत करने वाले चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने चैंबर से भी एक मिसाल कायम की है। उनके कार्यालय में कंप्यूटर और टेलीफोन के बीच में फाइलों का ढेर नहीं मिलेगा। चैंबर में एकमात्र फाइल थी, जिसमें दिन का शेड्यूल था।

मुख्य न्यायाधीश का बिजी शेड्यूल कोर्ट रूम से परे भी होता है। अदालत का समय सुबह 10.30 बजे से शाम 4 बजे तक है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश के लिए पंच-आउट का समय नहीं है। प्रशासनिक कार्य देर शाम तक जारी रहता है और इसमें अक्सर अदालती समय के बाद बैठकें भी शामिल होती हैं। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल अतुल मधुकर कुरहेकर उनकी मीटिंग्स, अगले दिन के लिस्टेड केस और प्रशासनिक कार्यों में उनकी सहायता करते हैं। मुख्य न्यायाधीश का डेस्कटॉप उनके डेस्क के एक कोने में रखा रहता है,जो कि उन जरूरी गैजेट्स में से एक है जो महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के दौरान जरूरी उपकरणों में से एक है। वे यहां ईमेल्स का जवाब देते हैं और केस फाइलों की जांच करते हैं।यहां तक कि निर्देश भी वह लैपटॉप के जरिए जारी करते हैं। उन्होंने बताया कि हमारी सभी फाइल्स अब ई-फाइल्स हैं। लैपटॉप और कंप्यूटर का उपयोग करना बहुत आसान है। उनका चैंबर भी अदालतों की तरह की डिजिटल हो गया है।

अब मुख्य मुद्दे पर आते हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक समूह ने ‘‘सोचे समझे दबाव, गलत सूचना और सार्वजनिक रूप से अपमान के जरिए न्यायपालिका को कमजोर करने के कुछ गुटों के बढ़ते प्रयासों पर भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को एक पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि ये आलोचक संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित हैं तथा न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। बहरहाल, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने यह नहीं बताया कि उन्होंने किन घटनाओं को लेकर सीजेआई को यह पत्र लिखा है। इनमें उच्चतम न्यायालय के चार सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी शामिल हैं। यह पत्र भ्रष्टाचार के मामलों में कुछ विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी दलों में वाकयुद्ध के बीच लिखा गया है। न्यायमूर्तियों (सेवानिवृत्त) दीपक वर्मा, कृष्ण मुरारी, दिनेश माहेश्वरी और एम आर शाह समेत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने आलोचकों पर अदालतों और न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठाकर न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के स्पष्ट प्रयासों के साथ कपटपूर्ण तरीके अपनाने का आरोप लगाया है। बहरहाल, सीजेआई चंद्रचूड़ के रहते चिंता करने की जरूरत नहीं है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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