प्रेरणास्पद लघुकथा 

☆ प्रेम ना जाने कोय ☆

 

शादी के लिए दो साल से कितनी लडकियां दिखा चुकी हूँ पर तुझे कोई पसंद ही नहीं आती। आखिर कैसी लडकी चाहता है तू, बता तो।

मुझे कोई लडकी अच्छी नहीं लगती। मैं क्या करूँ? मैंने आपको कितनी बार कहा  है कि मुझे लडकी देखने जाना ही नहीं है पर आप लोग मेरी बात ही नहीं सुनते।

तुझे कोई लडकी पसंद हो तो बता दे, हम उससे कर देंगे तेरी शादी।

नहीं, मुझे कोई लडकी पसंद नहीं है।

अरे! तो क्या लडके से शादी करेगा? माँ ने झुंझलाते हुए कहा।

हाँ – उसने शांत भाव से उत्तर दिया।

क्या??? माँ को झटका लगा, फिर सँभलते हुए बोली – मजाक कर रहा है ना तू?

नहीं, मैं सच कह रहा हूँ। मैं विकास से प्रेम करता हूँ और उसी से शादी करूंगा।

माँ चक्कर खाकर गिरने को ही थी कि पिता जी ने पकड लिया।

क्यों परेशान कर रहा है माँ को –  पिता ने डाँटा।

माँ रोती हुई बोली – कब से सपने देख रही थी कि सुंदर सी बहू आएगी घर में, वंश  बढेगा अपना और इसे देखो कैसी ऊल जलूल बातें कर रहा है। पागल हो गया है क्या? लडका होकर तू लडके से प्यार कैसे कर सकता है? उससे शादी कैसे कर सकता है?  बोलते – बोलते वह सिर पकडकर बैठ गई।

क्यों नहीं कर सकता माँ? लडका इंसान नहीं है क्या? और प्यार शरीर से थोडे ही होता है। वह तो मन का भाव है, भावना है। किसी से भी हो सकता है।

माँ हकबकाई सी बेटे को देख रही थी।  उसकी बातें माँ के पल्ले  ही नहीं पड रही थीं।

अब तो समझो मयंक की माँ ! कब तक नकारोगी इस सच को?

परंपरा और वास्तविकता का संघर्ष जारी है —

 

 डॉ. ऋचा शर्मा

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