स्मृति विशेष

प्रेरणादायी नेता लाल बहादुर शास्त्री

 

हमारे देश में 2 अक्टूबर का दिन बहुत ही सौभाग्यशाली दिन माना जाता है। इस दिन देश को दो ऐसी महान विभूतियां मिली थीं जिनका यह देश आज भी ऋणी है। इनमें एक थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था और दूसरी महान विभूति थे देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के मुगलसराय में हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री जी पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनाये गये इससे पूर्व भारत पर चीन के हमले ने हमारी अर्थव्यवस्था को जर्जर बना दिया था। देश में खाने को भरपूर अनाज नहीं था। ऐसे कठिन समय में जब शास्त्री जी ने देश की बागडोर संभाली तो सबसे पहले ध्यान उनका अन्न उत्पादन पर पड़ा। उसी समय शास्त्री जी ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। उन्हें एक तरफ देश की सीमा की सुरक्षा करनी थी, दूसरी तरफ अन्न के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाना था। शास्त्री जी ने देशवासियों से अपील की थी कि सप्ताह में एक दिन व्रत रहें और कितने ही लोगों ने उनकी बात मानकर इसलिए व्रत रखना शुरू कर दिया था ताकि एक दिन का बचा अनाज उन लोगों का पेट भर सके जो भूखे पेट सो जाते हैं। शास्त्री जी ने सब्जियां उगाने पर विशेष जोर दिया ताकि अनाज की खपत कम हो सके। उनके इन्हीं प्रयासों से देश बहुत शीघ्र आत्मनिर्भर बन गया। अफसोस यह कि ऐसा महान नायक प्रधानमंत्री पद पर सिर्फ दो साल रह सका और ताशकंद में एक समझौते के दौरान 10 जनवरी 1966 को उनकी हृदय गति रुकने से मौत हो गयी।

‘जय जवान जय किसान’ का नारा आज भी हर भारतीय के मन में एक नए जोश और नई उमंग का संचार करता है। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन 1904 में वाराणसी जिला स्थित मुगलसराय के एक किसान परिवार में हुआ था। जब शास्त्री जी केवल डेढ़ वर्ष के थे तब उनके पिता शारदा प्रसाद का देहान्त हो गया। पिता का साया उठते ही परिवार का सारा भार माता रामदुलारी देवी पर आ पड़ा किन्तु उन्होंने अपना धैर्य न छोड़ा। वे बेटे तथा दो पुत्रियों के साथ अपने पुश्तैनी मकान रामनगर में आकर रहने लगीं तथा अनेक अभावों और कठिनाइयों को झेलते हुए उन्होंने इन बच्चों का पालन-पोषण किया। पढ़ाई के प्रति उनकी लगन ऐसी थी कि कभी जब उनके पास नदी के पार स्थित अपने स्कूल तक जाने के लिये नाव वाले को देने भर के पैसे नहीं होते थे लेकिन मन छोटा करने के बजाय वह तैर कर नदी के पार जाते थे और पढ़ाई करने के बाद वैसे ही वापस भी आ जाते थे। उनकी इसी लगन और कर्तव्यनिष्ठा ने ही उनको ऊंचे से ऊंचे ओहदों तक पहुंचने लायक बनाया।

उन्हीं दिनों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया तो शास्त्री जी के मन में भी स्वतंत्रता आंदोलन में जाने की प्रबल इच्छा जागृत हुई। वे तिलक जी की देशभक्ति से पे्ररणा लेकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े जिसके लिए उन्हें कई बार जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ीं किंतु उनका अटल निर्णय भी उन्हें अपने लक्ष्य से डिगा नहीं सका। सन 1926 में काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जाना जाने लगा। उनकी राजनीति के प्रति बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति के सम्मानित पदाधिकारियों ने उन्हें प्रदेश कांगे्रस का मंत्री बनाया। सन 1947 को राष्ट्र की स्वतंत्रता के बाद उन्हें गणतंत्र भारत की नेहरू जी के नेतृत्व वाली प्रथम सरकार में रेलमंत्री बनाया गया। अपने कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी से जग प्रसिद्ध लाल बहादुर शास्त्री जी ने रेल मंत्रालय से सम्बन्धित सभी क्षेत्रों में अनेक सुधार एवं कल्याणकारी कार्य किये। उनके कार्यकाल के दौरान एक बार भीषण रेल दुर्घटना हुई जिससे वे बहुत अधिक दुःखी एवं आहत हुए। इस दुर्घटना ने उनके मन-मस्तिष्क को हिलाकर रख दिया और उन्होंने तत्काल रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने रेलमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।

सन् 1964 में पं. जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री जी ने 9 जून को जब देश की बागडोर अपने हाथों में संभाली तो देश चारों तरफ गंभीर आर्थिक संकट एवं बेरोजगारी, भुखमरी जैसी कठिनाइयों से जूझ रहा था लेकिन उन्होंने अपने कुशल नेतृृत्व एवं कौशल के बल पर सभी संकटों से भारत को निकाला। सर्वप्रथम उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर देशवासियों के स्वाभिमान को जगाया। उनका वक्तव्य कि ‘‘पेट पर रस्सी बांधों, साग-सब्जी अधिक खाओ। सप्ताह में एक बार शाम को उपवास रखो। हमें अगर जीना है तो इज्जत से जियेंगे वरना भूखे मर जायेंगे। बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी रहेगी’’, ने देश में हरित क्रांति की लहर दौड़ा दी जिससे लोग दूसरे देशों पर निर्भर होने के बजाय अपने ही खेतों में अन्न उपजाने लगे। देश में प्रचुर मात्रा में अन्न का भण्डार उत्पन्न हो गया। इस तरह कृषि के क्षेत्र में भारत ने आत्मनिर्भरता प्राप्त की। श्री शास्त्री जी के सामने जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानियों की फौजों द्वारा आक्रमण करने की दूसरी समस्या उत्पन्न हो गयी परन्तु वे इस आक्रमण से तनिक भी विचलित न हुए और उन्होंने घाटी में अपनी सेनायें भेजकर पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को मुहंतोड़ जवाब दिया जिससे पाकिस्तान को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।

विवश होकर पाक के नेता अयूब खान को सोवियत संघ स्थित ताशकंद में शांति समझौते के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े।
उनके शासनकाल में तात्कालिक तृतीय पंचवर्षीय योजना लागू की गयी जिसमें देश को आत्म-निर्भर एवं स्वयंस्फूर्त अर्थव्यवस्था की स्थापना करने का लक्ष्य रखा गया। इस योजना से कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गयी परन्तु इसके साथ-साथ इसने बुनियादी उद्योगों के विकास पर भी पर्याप्त बल दिया जो कि तीव्र आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक था। इससे पूर्व योजना काल में राष्ट्रीय आय की वृद्धि 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष के लक्ष्य की तुलना में 2.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गयी तथा प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि दर 0.1 प्रतिशत की ही रही थी। इसके साथ-साथ संविधान के उन्नीसवें एवं बीसवें अध्याय में संशोधन कर चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन, उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार, अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गयी। इसके पूर्व सत्रहवें एवं अठारहवें संशोधन में संपत्ति के अधिकारों को बदलते हुए कुछ अन्य भूमि सुधार प्रावधानों को नौंवी अनुसूची में रखा गया।

इस तरह लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत देश के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केन्द्रित करते हए विकसित राष्ट्र की ओर उन्मुख किया। इस महान शख्सियत का दुखद अंत 10 जनवरी सन 1966 को हृदय गति रुक जाने के कारण हो गया। यद्यपि नील गगन का यह चमकता सितारा आज हमारे बीच नहीं है किंतु उसके कार्य, उसकी यादें हमारी अन्तरात्मा में आज भी जीवित हैं जो हमें सदा सच्चाई, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा तथा तत्परता के लिए प्रेरित करती रहेंगी। यह ठीक है कि देखा जाये तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसात्मक आंदोलन के अग्रज मोहनदास करम चन्द गांधी, जिनका जन्म भी 2 अक्टूबर को हुआ, ने राष्ट्र की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभायी लेकिन यह भी सच है कि इसी दिन एक ऐसे शख्सियत का भी उदय हुआ था जिसने अपने सुयोग्य कार्यों से न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को प्रकाशमान किया। उनका नाम है लाल बहादुर शास्त्री यह
कभी भी अस्त न होने वाला ऐसा सूरज है जो वर्षों तक दूर नील गगन में टिमटिमाता रहेगा। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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