राजनीतिलेखक की कलम

सीजेआई की अपने कुनबे को नसीहत

 

कभी-कभी बहुत ही संवेदनशील मामले सामने आ जाते हैं। हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के तीन मजबूत स्तम्भ हैं। इनमें से कोई भी पाया कमजोर होते ही लोकतंत्र डगमगाने लगता है। न्याय पालिका में इन दिनों कलकत्ता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक मामला चर्चा का विषय बना है। हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसमें न्याय से ज्यादा नसीहत दिखाई पड़ती है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने हाईकोर्ट के फैसले को रोक दिया और कहा न्यायाधीशों का कार्य न्याय करना है, नसीहत देना नहीं। कलकत्ता हाईकोर्ट ने टीएन एजर लड़कियों को नसीहत दी थी कि वे अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें। यही नसीहत लड़कों को भी दी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लड़कियों के लिए अपमानजनक बताया और जजों को इस तरह की सलाह न देने की सख्त नसीहत दी है।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं मैं कानून और संविधान का सेवक हूँ। यह बात वह सभी न्यायाधीशों के संदर्भ में भी कहते हैं। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बीते दिनों यह टिप्पणी तब की थी जब मुंबई में एक वकील मैथूज जे नेदुम्परा ने कहा कि सीजेआई को जजों की नियुक्ति वाली काॅलेजियम प्रणाली और वरिष्ठ वकील के पद नाम की प्रणाली को समाप्त कर देना चाहिए। ध्यान रहे कि केन्द्र सरकार भी काॅलेजियम प्रणाली को पसंद नहीं करती है। सीजेआई ने वकील नेदुम्परा से कहा कि एक वकील के रूप में आपको अपने दिल की इच्छा पूरी करने की स्वतंत्रता है लेकिन इस न्यायालय के न्यायाधीश के नाते मैं कानून और संविधान का सेवक हूं, इससे बंधा हूूं।

सीजेआई ने जिस तरह वकील साहेब को नसीहत दी उससे ज्यादा कड़े शब्दों में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को समझाया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अशोभनीय टिप्पणी की थी। यह उनकी व्यक्तिगत राय हो सकती है लेकिन बतौर न्यायाधीश उनकी राय को पसंद नहीं किया गया। दरअसल एक युवक को नाबालिग से दुराचार के मामले में निचली अदालत ने दोषी ठहराया। युवक का नाबालिग के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि यह हर किशोरी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर की इंटेग्रिटी की रक्षा करे अर्थात यौन इच्छाओं पर काबू रखें। हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि किशोर लड़कों को युवा लड़कियों और महिलाओं की गरिमा का सम्मान करना चाहिए। कलकत्ता उच्च न्यायालय में जस्टिस चित्त रंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की बेंच ने नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोपी को बरी करते हुए यह टिप्पणी की थी। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने जजों को नसीहत दी और उनके फैसले को भी पलट दिया।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस विवादास्पद फैसले और टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा उच्च न्यायालय अपने फैसलों में उपदेश न दें तो बेहतर होगा। शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले की आलोचना भी कि जिसमें विद्वान न्यायाधीशों ने कहा था किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों को अत्यधिक आपत्तिजनक, गैर जरूरी और अनुचित बताते हुए कहा कि यह हमारे संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा -उच्च न्यायालयों को ऐसे मामलों में फैसला सुनाते समय उपदेश देने और निजी विचार व्यक्त करने से बचना चाहिए। न्यायमूर्ति अभय एन ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि पहली नजर में हमारा मामना यह है कि न्यायाधीशों से अपनी व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती। सुप्रीम अदालत ने कहा 18 अक्टूबर 2023 को कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा फैसले में की गयी टिप्पणियां संवधिान के अनुच्छेद-21 के तहत किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्वयं संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी कर मामले में अपना-अपना पक्ष रखने का निर्देश भी दिया। इस प्रकार के कड़े फैसले कभी-कभी करने ही पड़ते हैं और सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों के आचरण पर नियंत्रण रखना पड़ता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने यही कार्य किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में पेरनोड रिकार्ड इंडिया के एक वरिष्ट अधिकारी को जमानत दे दी। पेरनोड रिकार्ड दुनिया की सबसे बड़ी शराब निर्माता कंपनियों में से एक है। शराब नीति घोटाला मामले में ईडी की तरफ से दायर मामले में वरिष्ठ अधिकारी की गिरफ्तारी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कंपनी के रीजनल मैनेजर बेनॉय बाबू को जमानत दी कि किसी भी आरोपी को लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीमकोर्ट संविधान के नियमों का ही पालन करता है। इसलिए ईडी के आरोप को नकारा है।

ईडी ने दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में मनी लॉन्ड्रिंग केस दर्ज किया है। बिनॉय बाबू सीबीआई के मामले में सरकारी गवाह है, जबकि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी हैं। साथ ही इस मामले में बेनॉय बाबू के अलावा आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह का भी नाम शामिल है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि मामले में सुनवाई शुरू नहीं हुई है और आरोप तय नहीं हुए हैं। अदालत ने इस बात को ध्यान में रखते हुए जमानत दे दी कि वह 13 महीने से सलाखों के पीछे है। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि ईडी इतने लंबे समय तक लोगों को हिरासत में नहीं रख सकती है। बेनॉय बाबू को जमानत देते हुए अदालत ने टिप्पणी की, श्आप मुकदमे से पहले लोगों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रख सकते। ये ठीक नहीं है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि, श्हमें नहीं मालूम है कि ये कैसे होने वाला है। केंद्रीय जांच ब्यूरो जो आरोप लगा रहा है और ईडी ने जो आरोप लगाए हैं, उनमें विरोधाभास प्रतीत होता है।

ध्यान रहे शराब नीति घोटाला मामले में कई लोगों को हिरासत मे लिया । इस मामले को लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच काफी खींचतान भी चल रही है। शराब मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सांसद संजय सिंह समेत आप के दो वरिष्ठ सदस्यों को गिरफ्तार किया। सिसोदिया फरवरी से और संजय सिंह अक्टूबर से जेल में हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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