राजनीति

चुनाव आयोग की ताकत

 

भारत का निर्वाचन आयोग स्वायत्तशासी संस्था है और चुनाव के समय उसके पास असीमित अधिकार हो जाते हैं। विपक्षी दल चुनाव आयोग पर सत्ता पक्ष की कठपुतली होने का आरोप लगाते हैं। इस बार भी कांग्रेस और अन्य दलों ने इसी प्रकार का आरोप लगाया और कहा कि चुनाव आयोग उनकी बात ही नहीं सुनता है। गत 25 अप्रैल को उसी निर्वाचन आयोग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के चुनावी भाषणों पर सख्त रूख अपनाते हुए दोनों पार्टियों के अध्यक्षों को 29 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है। इस प्रकार चुनाव आयोग ने पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन की याद ताजा कर दी है। वह कहा करते थे कि चुनाव आयोग अपने नाखून किसी को न चुभाए लेकिन दिखाता जरूर रहे कि कभी भी वह नाखून चुभो सकता है। उनका इशारा संभवतः 1987 में महाराष्ट्र की विले पार्ले सीट के उप चुनाव की तरफ था। इस दौरान बाला साहेब ठाकरे पर भड़काऊ भाषण का आरोप लगा था। आरोप था कि बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना के उम्मीदवार यशवंत प्रभु के चुनावी प्रचार में भड़काऊ भाषण दिये। इसके चलते ही बाल साहेब ठाकरे को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर नारायण ने 1999 में वोट देने के अधिकार को रोक दिया था। बाल ठाकरे पर वोट देने से रोक 11 दिसंबर 1995 से 10 दिसंबर 2001 तक रही थी। उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गयी थी। यशवंत प्रभु पर भी 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा रहा। इसी से चुनाव आयोग की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। पीएम मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषणों के विवाद ने निर्वाचन आयोग की ताकत पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है।

यहां पर ध्यान देने की बात है कि 1950 में भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ था। उस समय आचार संहिता जैसी कोई चीज नहीं थी क्योंकि सभी से ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होने की अपेक्षा की जाती थी। भारत में 1960 के दशक से आचार संहिता की शुरूआत केरल विधानसभा चुनाव से हुई थी। इसके बाद 1962 के आम चुनाव में भी आचार संहिता कायम थी और 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आचार संहिता का कड़ाई से पालन भी कराया गया। आचार संहिता के लागू होने का समय तब भी तय नहीं था। निर्वाचन आयोग ने 1991 में सुझाव दिया कि जिस दिन चुनाव की तारीखें घोषित की जाएं, उसी दिन से आचार संहिता को लागू किया जाए। सरकार की चुनाव आयोग के प्रति मंशा उसी दिन से जाहिर हो गयी थी क्योंकि केन्द्र सरकार चाहती थी कि जिस दिन चुनाव की अधिसूचना जारी हो, उस दिन से आचार संहिता लागू होनी चाहिए। यह मामला भी अदालत में गया और 2001 में चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार के बीच इस बात पर सहमति बनी कि आचार संहिता उसी दिन से लागू की जाएगी जिस दिन चुनाव की तारीख घोषित की जाएगी। उसी दौरान यह भी तय हुआ था कि चुनाव तारीखों के ऐलान और अधिसूचना जारी होने की तारीख के बीच कम से कम तीन सप्ताह का अंतर होगा।

आज पीएम मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विवादास्पद बयानों के बाद इन सभी बातों पर बहस शुरू हुई है। सामान्य रूप से आचार संहिता का उल्लंघन तब होता है जब कोई उम्मीदवार या नेता जाति या सम्प्रदाय के आधार पर वोट मांगता है। नेता या प्रत्याशी ऐसा कुछ करता है जिससे अलग-अलग जातियों, समुदायों, धर्मों या भाषाई समूहों के बीच मतभेद या संघर्ष बढ़ने का खतरा हो या आपस में घृणा और तनाव पैदा हो सकता हो। नेताओं अथवा प्रत्याशियों के खिलाफ आचार संहिता का आरोप उस समय भी तय होता है जब असत्यापित आरोपों के आधार पर या बयानों को तोड़-मरोड़ कर दूसरी पार्टी के नेताओं या कार्यकर्ताओं की अलोचना की जाती है। आचार संहिता का उल्लंघन उस समय भी होता है जब किसी धार्मिक स्थल का भाषण या पोस्टर या चुनावी प्रचार से जुड़े काम में इस्तेमाल किया गया हो। इसके अलावा मतदाताओं को किसी प्रकार का लालच देना, धमकाना, पैसा देना, शराब बांटना, प्रचार का समय बीत जाने के बाद भी रैली करना मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक ले जाना भी चुनाव आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है।

इस बार 18वीं लोकसभा के लिए जब मतदान के दो चरण सम्पन्न हो चुके हैं तब तक आचार संहिता के उल्लंघन की कई शिकायतें आयीं और उन पर कार्रवाई भी की गयी है। चुनाव आयोग के अनुसार 16 अप्रैल तक आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में 200 से ज्यादा शिकायतें मिलीं और 160 मामलों में कार्रवाई भी की गयी है। आचार संहिता लागू होने के एक महीने के भीतर 7 राजनीतिक दलों के 16 प्रतिनिधियों ने शिकायतें दर्ज करवायीं। सबसे ज्यादा शिकायतें कांग्र्रेस और भाजपा ने दर्ज करायी हैं। चुनाव आयोग के अधिकारियों की मानें तो यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत पर निर्वाचन आयोग ने संज्ञान लिया है। इससे पूर्व किसी भी मौजूदा प्रधानमंत्री को आचार संहिता के उल्लंघन का नोटिस नहीं दिया गया। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (जेपी नड्डा) को चुनाव आयोग ने जो नोटिस जारी किया है, उसमें कहा गया है कि इसी 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनाव रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो भाषण दिया था उसके खिलाफ कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग के पास शिकायतें दर्ज करायी थीं। उस रैली में पीएम मोदी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस लोगों की सम्पत्ति छीन कर मुस्लिमों में बांटना चाहती है। मोदी ने उसी रैली में यह भी कहा था कि कांग्रेस सरकार आयी तो महिलाओं का मंगल सूत्र भी नहीं बंचने देगी। यहां पर ध्यान देने की बात है कि मंगल सूत्र भी हिन्दू महिलाएं ही पहनती हैं।

इसी संदर्भ में चुनाव आयोग ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को जो नोटिस भेजी है उसमें खरगे और राहुल गांधी दोनों के खिलाफ आरोप लगाया गया है। भाजपा ने राहुल गांधी और खरगे के खिलाफ शिकायत की है। राहुल पर आरोप है कि केरल के कोट्टायम की रैली में राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर एक देश, एक भाषा और एक धर्म थोपने का आरोप लगाया था। इसके अलावा भाजपा की तरफ ये यह भी कहा गया कि तमिलनाडु के कोयम्बटूर में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भाषा, इतिहास और परम्परा पर हमला करने का आरोप लगाया था। मल्लिकार्जुन खरगे पर आरोप लगाया गया है कि वह अपनी रैलियों में दावा कर रहे हैं कि एससी, एसटी से होने के कारण उन्हें राममंदिर के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया था।

बहरहाल, चुनाव आयोग सभी को समान अवसर देने को प्रतिबद्ध है। इसलिए किसी को भी चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं करने देगा। प्राप्त शिकायतों पर सख्त कदम उठाते हुए चुनाव आयोग ने दोनों पार्टियों के अध्यक्षों को नोटिस देकर पूछा है कि क्या वे अपने स्टार प्रचारकों के भाषणों के प्रति जवाब देह है। चुनाव आयोग ने यह भी पूछा कि अध्यक्षों ने आदर्श आचार संहिता को क्यों उनके भाषणों में समाज में बंटवारे की राजनीति को बढ़ावा दिया गया? चुनाव आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि राजनीतिक दलों और नेताओं की ओर से आचार संहिता का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है। आयोग ने कहा कि सियासी दलों और उनके वरिष्ठ नेताओं से ऐसे बयानों की उम्मीद नहीं की जा सकती है जो समाज में विघटन और साम्प्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करे। चुनाव आयोग के इस कदम से आज निश्चित रूप से पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की याद आ रही है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग से टीएन शेषन के कदमों पर चलने की अपेक्षा की थी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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