अध्यात्म

हनुमान जी ज्ञान और गुण के हैं समुद्र (3)

राम के अनन्य भक्त हनुमान

 

(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त हैं हनुमान। इनको वर्तमान मंे भी उसी तरह सम्पूजित किया जाता है क्योंकि पौराणिक आख्यानों के अनुसार हनुमान जी, अश्वत्थामा, राजा बलि, परशुराम, विभीषण, वेद व्यास और कृपाचार्य को अजर-अमर होने का वरदान मिला था। त्रेता युग मंे जब राक्षस राज रावण माता सीता का हरण कर लंका ले गया तो उनकी खोज मंे वानरराज सुग्रीव ने अपनी विशाल वानर सेना को चारों तरफ भेजा था। हनुमान जी, अंगद और जाम्बवंत समेत एक दल दक्षिण दिशा मंे खोज के लिए भेजा गया था। इस दल को जटायू के बड़े भाई सम्पाति ने बताया कि सीता जी को रावण ने लंका मंे रखा हुआ है लेकिन सौ योजन समुद्र पार कर जो लंका जा सकता है, वही सीता को खोज पाएगा। अंगद आदि सूर्य वीरों ने असमर्थता जताई तो जाम्बवंत ने हनुमान जी को उनके बल-बुद्धि की याद दिलाई। हनुमान जी लंका पहुंचे माता सीता ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को अजर-अमर होने का वरदान दिया था।
हनुमान जी के आशीर्वचन से ही गोस्वामी तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम का गुणगान रामचरित मानस और अन्य कृतियों मंे किया है। हनुमान चालीसा मंे एक-एक चैपाई और दोहा, महामंत्र के समान है। इसकी विशद् व्याख्या स्वामी जी श्री प्रेम भिक्षु जी महाराज ने की है। इसका सभी लोग पाठन कर सकें, यही हमारा प्रयास है। हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा (हिफी) इस अवसर पर इसका क्रमबद्ध प्रकाशन कर रहा है। -प्रधान सम्पादक

हनुमान जी ज्ञान और गुण के हैं समुद्र

भगवान राम के चरित्र का गुणगान करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी गुणवत्ता और प्रचुर ज्ञान चाहते हैं। इसलिए गुरु के साथ ही ज्ञान और गुण के सागर हनुमान जी की प्रार्थना कर रहे हैं। हनुमान जी को ज्ञान का यह समुद्र कहां मिला, इसे भी बताया गया है-
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहूं लोक उजागर।।
अर्थ-ज्ञान और गुण के समुद्र श्री हनुमान जी की जय हो! जो तीनों लोकों को अपने शुभ चरित्र के द्वारा जागृत करते हैं, ऐसे कपीस की जय हो।
भावार्थ-‘ज्ञान’-लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद श्री रामजी ने हनुमान जी को आत्मा, अनात्मा और परमात्मा का वास्तविक स्वरूप, तीनों के कार्य और कर्तव्य परायणता का बोध कराया था। ईश्वरीय माया का स्वप्न में भी प्रभाव न रहे, ऐसा आशीर्वाद भी दिया था। जानकी जी ने भी प्रसन्नचित होकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिया कि ईश्वर प्राप्ति करने और कराने में जो भी सौम्यगुण हैं वह सब तुम्हारे हृदय में निवास करेंगे।
‘‘हनु’’-शब्द विनाश के लिए है। ब्रह्म से विमुख करने वाले जो सूक्ष्म या स्थूल कार्य हैं उनका हनन करना ही जिसका काम है, उसे ‘हनु’ कहते हैं। इसलिए ‘हनुमान’ नाम पड़ा।
दृष्टान्त-गर्भ में स्थित शुकदेव जी ने व्यास जी के प्रार्थना करने पर भी बाहर निकलना पसन्द नहीं किया। व्यासजी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आह्वान किया और उनको बताया कि बारह वर्ष हो गए जीव गर्भ से बाहर आता ही नहीं और न आना ही चाहता है।
ब्रह्मा जी ने जीव से पूछा-‘‘तुम बाहर क्यों नहीं निकलते?’’
जीव ने पूछा-‘‘आप कौन हैं?’’ ब्रह्मा ने कहा-‘‘मैं सृष्टिकर्ता हूं।’’ जीव ने पूछा-‘‘आपका क्या काम है?’’ ब्रह्मा ने बताया- ‘‘मेरा काम है, गर्भ में, जन्म में, वृद्धावस्था में और मृत्यु में यथार्थ ज्ञान का बोध कराना।’’ जीव ने कहा-‘‘आप ज्ञान दे दीजिए और चले जाइये। जब आपने दुःखमय संसार में दुःख भोगकर ही ज्ञान देना है तो यहीं पर ज्ञान लेकर गर्भावस्था में ही दुःख भोग लूँगा।’’ ब्रह्मा जी ने कहा-‘‘जो चाहे सो माँग ले परन्तु गर्भ से बाहर आ।’’
जीव ने कहा-‘‘तुम्हारे आधीन होकर गर्भ, जन्म, जरा और मरण के दुःखों से पीड़ित होकर मैं ज्ञान प्राप्त करना नहीं चाहता, आप जाइये।’’
शिव जी बोले-‘‘हे जीव! तू इस मल-मूत्र के स्थान में क्यों पड़ा है?’’ जीवन ने पूछा-‘‘आप कौन हैं?’’ शिवजी ने कहा-‘‘मैं संसार का हर्ता भी हूँ और ज्ञान प्रदाता भी हूँ।‘‘ जीव ने कहा-‘‘जिस ज्ञान से आप उपदेश देते हैं वह तो आप दे दीजिए परन्तु आपका सृष्टि हर्ता का स्वरूप मैं देखना नहीं चाहता।’’
विष्णुजी ने कहा-‘‘मैं सृष्टि का पालनकर्ता एक महान शक्ति हूँ। मैं तुझे समझाता हूँ कि प्रत्येक वाणी को सुख पहुंचाना ही मेरा काम है। तुम गर्भ में स्थित होकर माता को कष्ट पहुँचा रहे हो। बाहर पिताजी भी दुःखी हैं। गर्भ का नियम केवल दस महीने का है। तुम बारह वर्ष से पीड़ित कर रहे हो।’’ गर्भ में स्थित जीव ने कहा-‘‘मुझे यहाँ डालने वाला कौन है? मैं उसकी खोज कर रहा हूँ मैं दुःख नहीं दे रहा हूँ। पिता को कष्ट, माता को कष्ट और गर्भ से न निकलने की भावना पैदा करने वाला कौन है? मेरे पिता ने सौ वर्ष तक तप किया। वह पुत्र भाव से मुझे क्यों नहीं देखते? कष्ट देने की भावना से क्यों देख रहे हैं? श्री विष्णु जी ने उत्तर दिया-‘‘वह मेरी माया है, जिसके द्वारा संसार मोहित हो रहा है और नाना प्रकार के कर्मों के बन्धन में उचित, अनुचित कर्म करता रहता है।’’ जीव ने कहा-‘‘हाँ, तो ठीक है। आप प्रतिज्ञा करें कि आपकी वह माया मुझे न सताये, वरना गर्भ में ही ठीक हूँ।’’ तब तीनों देवताओं ने प्रतिज्ञा की ‘‘हमारे तीनों के जो सृष्टि के कार्य हैं तुम उनसे पृथक रहोगे। हमारी माया तुम्हें नाम-मात्र भी नहीं व्यायेपी।’’
यही रामजी का दिया हुआ वास्तविक ज्ञान हनुमान जी को प्राप्त हुआ था। इसलिए वह ज्ञान के समुद्र माने जाते हैं।
हनुमान जी में ‘‘सौम्यगुण’’ हैं। राग, द्वेष, ईष्र्या आदि से रहित जो केवल ईश्वर प्राप्ति के लिए ही प्रयत्न करे और करावे उसे ‘‘सौम्यगुण’’ कहते हैं।
उदाहरण-श्री हनुमानजी को रस्सी से बाँधकर, मुग्दरों और भालों से मारते और घसीटते हुए राक्षस रावण की सभा में ले गये थे। तब हनुमान जी सोचते थे कि ‘‘इनके परिवारों को मैंने उजाड़ दिया है। जितना लंका का और रावण का विनाश हुआ है उसका बदला तो यह तिनके के बराबर भी नहीं है। चलो-इन्हें थोड़ी देर मौज लूटने दो।’’
सभा में रावण के सन्मुख होते ही, रावण को देखते हुए, विचार कर रहे हैं। न उसके प्रश्नों की ओर ध्यान देते हैं न उसके क्रोध की तरफ और न ही उसके कटु बचन की तरफ। वह सोच रहे हैं कि रावण में शक्ति देख रहा हूँ। स्वर्ग में जो इन्द्र है। ऐसे सौ इन्द्र भी इकट्ठे हो जायें तो भी रावण की बराबरी नहीं कर सकते। इसका तेज, इसकी योग्यता और विद्या प्रशंसनीय है। यदि यह राक्षस स्वभाव को छोड़ दे और जानकी जी को दे देवे तो मैं रामजी से पूरी सिफारिश करूँगा कि वह मारने योग्य नहीं है। रावण के लिए त्रिलोकी का शासन तो एक साधारण बात है। ऐसे व्यक्ति को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
क्या हनुमानजी में ये कोई साधारण गुण हैं? क्या कोई ऐसा व्यक्ति भी उत्पन्न हुआ है जो अपने सद्गुणों को जीवों के उद्धार के लिए ही लगाता हो और स्वयं कष्ट सहता हो?
‘‘जय कपीस’’-अर्थ-‘‘क जलम रसम् वा पिबति इति कपीस’’। जो जल या रस का पान करता हो उसे कपि कहते हैं। ईश का अर्थ है-शासन।
जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा रस व जल को ग्रहण करके वर्षा के समय, शुद्ध व निर्मल बनाकर प्राणीमात्र को जीवनदान देता है, उसी प्रकार श्री हनुमानजी वेद उपनिषद्, पुराण, शास्त्र, योगीगण, भक्तगण और यज्ञादि कर्म में निपुण, सज्जन पुरुषों द्वारा जैसी आराधना की गई है, उस उपासना रूपी रस को स्वयं पान करके अपने चरित्रों द्वारा रस रूपी वर्षा करके तीनों लोकों को जागृत करते हैं। यानि ईश्वर की ओर ले जाते हैं। इसलिये ‘कपीस’ कहा है।राम के अनन्य भक्त हनुमान (हिफी)

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