Uncategorizedलेखक की कलमसम-सामयिक

मणिपुर में नफरत व सियासत

 

ताजा हिंसक वारदात ने एक हफ्ते से सामान्य की ओर लौट रहे मणिपुर में भीतर जल रही नफरत की आग का हवाला दे दिया है। जब ताजा गोलीबारी के बाद पुलिस ने गांवों और आसपास के जंगलों सहित क्षेत्र में गहन तलाशी ली, तो तीन लापता युवकों के बुरी तरह से क्षत-विक्षत शव बरामद हुए।

संकटग्रस्त मणिपुर में हिंसा की एक ताजा घटना में, 18 अगस्त सुबह तांगखुल नागा बहुल उखरूल जिले के कुकी थोवई गांव में भारी गोलीबारी के बाद तीन लोग मारे गए हैं। एक सप्ताह से कुछ शांत दिख रहे माहौल को इस वारदात ने एकाएक अशांति के उसी दावानल मे ंधकेल दिया जिसमें पिछले तीन माह से मणिपुर जल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से मणिपुर के साथ देश की प्रतिबद्धता की बात कही लेकिन इतना कहना मात्र विकराल रूप धारण कर चुकी समस्या का समाधान नहीं दे सकता है इसके लिए विपक्ष समेत दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाधान खोजने की है। उधर विपक्षी दलों की मणिपुर मुद्दे पर नकारात्मक भूमिका देखने को मिल रही है विपक्ष राष्ट्रहित को अनदेखा कर समस्या का समाधान निकालने के लिए प्रयत्नशील न होकर इसे सिर्फ मोदी सरकार की नाकामी साबित करने में लगा हुआ है। कायदे से विपक्ष को मणिपुर हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर वोट की राजनीति से इतर गंभीर होना चाहिए और सकारात्मक भूमिका निभाते हुए देश भर में अपनी छाप छोड़नी चाहिए लेकिन विपक्ष के लिए मणिपुर की शांति कोई मुद्दा मालूम नहीं पड़ता। उनकी सारी कोशिशें मोदी सरकार को कमतर आंकने और 2024 के चुनाव की बिसात बिछाने भर की है।
मौजूदा ताजा हिंसा के संबंध में सुरक्षा सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि उखरूल जिले के लिटन पुलिस स्टेशन के तहत कुकी थोवई गांव में भारी गोलीबारी हुई। ग्रामीणों ने बताया कि गांव से भारी गोलीबारी की आवाज सुनी गई है। उखरुल के एसपी निंगशेम वाशुम ने संवाददाताओं को बताया कि कथित तौर पर तीनों ग्राम रक्षक थे जिन्हें गांव की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। घटना स्पष्ट रूप से राज्य में चल रही जातीय समस्या से संबंधित है। कुछ हथियारबंद बदमाश गांव में घुस आए और गांव की रखवाली कर रहे तीन लोगों को गोली मार दी गई। गौरतलब है कि कुकी थोवई गांव उखरुल जिले के अंतर्गत आता है, जहां राज्य के मैतेई और कुकी-जोमी समुदायों के बीच चल रही झड़पों में हिंसा नहीं देखी गई है।
आप जानते हैं कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर बीते करीब साढ़े तीन माह से जल रहा है। लोग डर और दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं। राज्य में जारी नस्लीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर राज्य में हिंसा भड़क उठी है। पुलिस के मुताबिक उखरुल जिले के लिटन पुलिस स्टेशन के अंतर्गत थवई कुकी गांव में संदिग्ध मैतेई सशस्त्र बदमाशों और कुकी स्वयंसेवकों के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें तीन कुकी युवक मारे गए। ऐसे में हिंसा न रोक पाने के कारणों को लेकर सरकार पर सवाल उठने लाजमी हैं। विपक्ष लगातार पूछ रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार हिंसा क्यों नहीं रोक पा रही हैं। उधर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि हम मणिपुर में शांति के लिए प्रयास और प्रार्थना कर रहे हैं। हम काफी हद तक शांति बहाल करने की कोशिश में सफल हो रहे हैं। ध्यान रहे मणिपुर में हिंसा की रोकथाम के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लगातार हर संभव प्रयास करने में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में सुरक्षा बलों ने राज्य व्यापी अभियान चला रखा है।
बीते दिनों सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान के दौरान हिंसा प्रभावित मणिपुर के कई जिलों से हथियार, कारतूस और बम बरामद हुए थे। गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में 3 मई को पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं। राज्य में हुई हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैतेई समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह राज्य के पर्वतीय जिलों में रहते हैं। जानकारों के मुताबिक मणिपुर की हिंसा सिर्फ दो ग्रुपों का झगड़ा नहीं है, बल्कि ये कई समुदायों से भी गहराई से जुड़ा है। ये कई दशकों से जुड़ी समस्या है जिसे अब तक सिर्फ सतह पर ही देखा जा रहा है। पिछले दिनों एक चर्चा में पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवणे ने कहा था कि मणिपुर में जो हो रहा है उसमें विदेशी एजेंसियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है। वास्तव में राज्य में स्थिति खतरनाक है और देश की एकता के लिए इसे नियंत्रित करना जरूरी है। सीमावर्ती राज्यों में अस्थिरता देश की समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं है।
ताजा हिंसक वारदात ने एक हफ्ते से सामान्य की ओर लौट रहे मणिपुर में भीतर जल रही नफरत की आग का हवाला दे दिया है। जब ताजा गोलीबारी के बाद पुलिस ने गांवों और आसपास के जंगलों सहित क्षेत्र में गहन तलाशी ली, तो तीन लापता युवकों के बुरी तरह से क्षत-विक्षत शव बरामद हुए। पीड़ितों की पहचान जामखोगिन हाओकिप (26), थांगखोकाई हाओकिप (35) और हॉलेंसन बाइट (24) के रूप में की गई है। सुरक्षा सूत्रों ने बताया कि उनके शरीर पर धारदार हथियार के चोट के निशान थे और उनके अंग कटे हुए थे।3 मई से राज्य में चल रही जातीय हिंसा मुख्य रूप से मैतेई-प्रभुत्व वाले बिष्णुपुर, इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व और काकचिंग और कुकी-जोमी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों तक ही सीमित थी।राज्य का नागा समुदाय मौजूदा संघर्ष से सुरक्षित दूरी बनाए हुए है क्योंकि इसके विधायकों और नागरिक समाज के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि मुद्दे के किसी भी राजनीतिक समाधान और कुकी-जोमी क्षेत्रों को अलग प्रशासन देने की किसी भी योजना के मामले में उनसे परामर्श किया जाना चाहिए। नागा क्षेत्रों को प्रभावित नहीं करना चाहिए।
इस सप्ताह की शुरुआत में, स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जातीय हिंसा से प्रभावित पूर्वोत्तर राज्य में स्थिति में सुधार हो रहा है और कहा कि इसकी समस्याओं का समाधान केवल शांति के माध्यम से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा, देश मणिपुर के साथ है। सरकार ने मणिपुर में अमन-चैन वापस लाने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाने जैसे कई कदम भी उठाए है? वास्तव में अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार बिना देर किए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल या इसी स्तर के किसी जिम्मेदार शख्सियत को शांति स्थापना के लिए तैनात कर मणिपुर की नफरत की आग को नियंत्रित कर शांति की स्थापना करे। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button