बच्चों की जिंदगी से खेलते शिक्षक
हाल ही में कर्नाटक में एक 14 साल की छात्रा ने 16 मार्च को सुसाइड कर लिया। छात्रा के परिजनों का आरोप है कि स्कूल में चोरी का आरोप लगाकर छात्रा का यूनिफॉर्म उतरवाकर तलाशी ली गई थी। जिससे आहत होकर उसने सुसाइड कर लिया। पुलिस के अनुसार, पीड़िता के साथ चार अन्य छात्राओं के भी यूनिफॉर्म उतरवाए गए थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। आरोपी टीचर भी पुलिस की गिरफ्त में है।
ये पूरा मामला बागलकोट का है। पुलिस के मुताबिक, 14 मार्च को पीड़िता के क्लास में 2 हजार रुपये की चोरी हुई थी। रुपये चोरी के शक में टीचर ने स्टाफ और हेडमास्टर के सामने ही बच्चियों के कपड़े उतरवाकर तलाशी ली। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोप है कि हेड मास्टर सहित शिक्षण कर्मचारियों ने लड़कियों को घेर लिया। उन्हें पास के मंदिर में भी ले जाया गया, वहां पर कसम दिलाई गई। मंदिर में ही सबके सामने कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई।
इस वारदात के लिए कदमपुर स्कूल की शिक्षिका जयश्री मिश्रीकोटी और एक अन्य शिक्षक के.एच.मुजवारा को आरोपी बनाया गया हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, छात्रा ने दुर्गा देवी के सामने कसम खाई थी कि उसने पैसे नहीं चुराये हैं, लेकिन शिक्षकों ने उसकी बात नहीं सुनी। अपनी बेगुनाही को साबित करने के बाद भी छात्रा को दो हजार रुपये की चोरी के लिए संदेह की नजर से देखा गया और इस सबके चलते एक बेगुनाह 14 साल की बच्ची ने फांसी लगा ली। वह स्कूल में हुए दुर्व्यवहार के कारण अपने अपमान से दुखी थी। जिस स्कूल में वह ससम्मान पढ़ती थी, वहां के शिक्षकों की चूक ने ही नाबालिग बच्ची को अन्तर्मन तक चोटिल कर दिया। बच्ची पर स्कूल में 2 हजार रुपये चोरी का आरोप लगा दिया गया। बच्ची को दुर्गा मंदिर में ले जाकर कसम खिलाई गई। इससे भी संतोष नहीं मिला तो बच्ची के कपड़े उतारकर तलाशी ली गई। रुपये तो नहीं मिले मगर लोगों के बीच निर्वस्त्र होते ही बच्ची का दिल भर आया और उसका किशोर मन क्षुब्ध हो गया।
जिन शिक्षकों पर बच्चों को जीवन में सदाचार, साहस और हर मुसीबत से टकराने की शिक्षा देने का जिम्मा है, उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं है कि बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। सिर्फ दो हजार रुपये की कथित चोरी और चोरी के आरोप में बच्चियों की निर्वस्त्र कर तलाशी लेना समूची स्कूली व्यवस्था और शिक्षकों की ट्रेनिंग पर सवालिया निशान है। क्या बेसिक शिक्षा के लिए तैनात किए जाने वाले शिक्षकों को इतना प्रशिक्षण भी नही दिया गया कि उन्हें बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
नादानउम्र की इस मासूम बच्ची की आत्महत्या के लिए कौन जिम्मेदार है? चोरी का आरोप लगाने वाला लैंग्वेज टीचर या बच्ची को मंदिर में कसम खिलाने वाला प्रिंसिपल। कपड़े उतरवाने वाले टीचर या वे लोग, जो चुपचाप पूरी घटना को देखते रहे। ऐसे अभिभावक को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए, जिन्होंने घटना के बाद स्कूल में अपना विरोध दर्ज नहीं कराया। उस स्कूल में लड़की की बड़ी बहन भी पढ़ती है, उसने ही घर में पूरा वाकया सुनाया। परिजनों ने पुलिस को बताया कि घटना के बाद से ही बच्ची गुमसुम रहने लगी थी। सार्वजनिक अपमान से दुखी होकर वह स्कूल नहीं गई। बागलकोट के एसपी अमरनाथ रेड्डी ने बताया कि पुलिस ने उसकी मौत की परिस्थितियों के बारे में सुनने के बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच शुरू की। बागलकोट में सार्वजनिक शिक्षा के उप निदेशक इस केस में खामोश हैं। पुलिस ने आरोपी टीचर को गिरफ्तार कर लिया है मगर यह केस कई सवाल छोड़ गया है।
गौरतलब है कि हर राज्य से स्कूलों में बच्चों के साथ शिक्षकों ंद्वारा दुव्र्यवहार मारपीट की खबरें आती रही हैं। बच्चों को टॉर्चर करने में प्राइवेट स्कूल भी पीछे नहीं हैं। फीस के लिए धूप में बैठाने, बच्चों से मारपीट करने और एग्जाम नहीं देने के मानसिक दबाव बनाना आम बात बन गया हैं। सरकारी स्कूलों में मिड डे मील के बर्तन साफ कराने और टॉयलेट साफ कराने की शिकायतों से हर राज्य का शिक्षा विभाग चिंतित है। शारीरिक उत्पीड़न पर कानूनी रोक के बावजूद इस पर रोक लगाना स्वप्न बना है। कर्नाटक के स्कूलों में स्टूडेंट्स के कपड़े उतरवाने के कई मामले पहले भी चुके हैं। दो महीने पहले ही कलबुर्गी के एक स्कूल में छात्र के साथ मारपीट की गई थी। आंबेडकर पूजा नहीं करने के कारण उसे नंगा कर हॉस्टल में घुमाया गया था। मांड्या के सरकारी स्कूल में 100 रुपये की तलाशी के लिए 12 छात्राओं के कपड़े उतरवाए गए थे। करीब एक साल पहले मांड्या जिले के गणनगुरु गांव के सरकारी स्कूल में मोबाइल लेकर आई छात्रा को प्रिंसिपल ने सहपाठियों के सामने बेरहमी से पीटा था और कपड़े उतरवाकर घंटों बैठाए रखा था। प्रिंसिपल ने बच्ची को घंटों पानी तक नहीं पीने दिया था। इसी तरह दलित छात्र द्वारा शिक्षक का पानी का मटका छूने पर पिटाई से मासूम की मौत का मामला आप भूले नहीं होंगे। अब चोरी के इल्जाम में 14 साल की लड़की के साथ दुव्र्यवहार और फिर बच्ची की खुदकुशी का मामला बेहद गंभीर व शर्मनाक है।
इन हालातों में जब अल्पायु बच्चों में संवेदनशीलता का स्तर काफी बढ़ गया है। लगातार बाल व किशोर छात्र-छात्राओं को स्कूली शिक्षा के एग्जाम व माक्र्स सिस्टम के भारी भरकम दबाव ने उनसे बचपन छीन लिया है। यह मैकाले की शिक्षा व्यवस्था बाल मन पर ग्रहण बनकर उनके स्वाभाविक विकास में बाधा बन रही है। आज छोटे बच्चे जरा सी डांट फटकार को भी अन्तर्मन तक महसूस करते हैं और तनिक सा उनकी आत्म सम्मान की भावना या ईगो को हर्ट करने वाला दुव्र्यवहार उन्हें भीतर तक अवसाद या मानसिक संताप से भर देता है। ऐसे बदलते परिवेश में शिक्षकों की बच्चों के साथ व्यवहार करते समय जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। घायल शरीर का उपचार किया जा सकता है लेकिन घायल मन का उपचार कठिन होता है। शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले शिक्षकों को प्रशिक्षित होन ेके बाद तैनाती दी जाती है फिर इस प्रशिक्षण मे ंकहां कमी है जो शिक्षक लगातार बच्चों के साथ असंवेदनशील दुव्र्यवहार कर रहे हैं। आज के बालक बेहद संवेदनशील और जीवन से पलायन की मानसिकता ओर आसानी से आकर्षित हो रहे हैं ऐसे दौर में स्कूल और शिक्षकों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि वह बच्चों के साथ जिम्मेदारी भरा व्यवहार करें। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)