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काॅप 28 सम्मेलन: एक बेहतर पहल

 

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। इस समस्या से निबटने के लिए कई सम्मेलन आयोजित हुए हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों व उससे निबटने के उपायों पर चर्चा होती है। सम्मेलनों में कई ऐसे निष्कर्ष सामने आ जाते हैं जो जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्परिणामों को कम करने में प्रभावी सिद्व होते हैं।

काॅप सम्मेलन जलवायु परिवर्तन पर विचार करने के लिए बेहतर पहल है, जो हर वर्ष आयोजित होता है। काॅप सम्मेलनों से कोई प्रभावी परिवर्तन सामने नहीं आया है परन्तु जलवायु बदलाव के दुष्परिणामों पर चर्चा जरूर हुई है और विश्व के देश इसकी भयावहता को देखते कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में सक्रिय हुये हैं। ग्लोबल वार्मिंग, ग्लोबल कूलिंग, बाढ़, अतिवृष्टि, सूखा अन्य प्राकृतिक आपदायें के प्रति सभी चितिंत हैं।

काॅप-28 सम्मेलन जलवायु परिवर्तन की समस्या से निबटने के लिए निर्णायक साबित होगा। सम्मेलन विभिन्न देशों को एकजुट करने की दिशा में बेहतर प्रयास है। काॅप का अर्थ है ‘‘क्राॅन्फ्रेंस आॅफ पार्टीज’’। संयुक्त राष्ट्र क्लामेट चेंज कन्वेंशन में जिन देशांे ने हस्ताक्षर किये हैं, वे इसके पक्षकार होते हैं। इसमें कन्वेंशन में पारित प्रस्तावों के कार्यान्वयन की दिशा में प्रयास किये जाते हैं। सम्मेलन में पिछले सम्मेलनों की समीक्षा के अलावा भविष्य में महत्वपूर्ण निर्णयों के आधार पर उपलब्धियों के लिए कवायद की जायेगी। निश्चित ही इसके नतीजे बेहतर होंगे।

काॅप .28 में जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए ‘‘ग्रीन क्रेडिट’’ पर पहल की गयी है। इसके माध्यम से कार्बन सिंक (कार्बन को सोखने का तंत्र) बनाया जायेगा जो डिजीटल होगा। वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 45 फीसदी तक घटाना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बारे में अपने विचार व्यक्त किये है। कार्बन सिंक की प्रक्रिया में जन भागीदारी आवश्यक है। भारत विश्व के उन देशों में अग्रणी हैं जो कार्बन उत्सर्जन घटाने में सफल हुये हैं। भारत में कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य 11 वर्ष पहले ही प्राप्त कर लिया है।

सम्मेलन की खास बात यह है कि बड़े देश ‘हानि व क्षति’ कोष की स्थापना कर इसमें योगदान को सहमत हो गये हैं। विद्युत उत्पादन को कम करने, नवीकरण ऊर्जा को बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन में सब्सिडी को समाप्त करने में तेजी लानी होगी।
विश्व भर में मौसम असामान्य हो रहा है। मौसम की असमानता से भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव सामने नजर आ रहे हैं। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग पर काबू पाना सभी देशों के लिए जरूरी है। ग्लोबल वार्मिंग को 1ण्5 डिग्री तक लाना है। यह तभी मुमकिन है जब सदस्य देश कार्बन उत्सर्जन कम करें ताकि समय पर निश्चित लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। प्रयास किया जाय तो लक्ष्य कठिन नहीं है।

काॅप सम्मेलन में हानि व क्षति कोष (एलडीएफ) का उद्देश्य विकासशील देशों को फंड से सहायता देनी है। कई विकासशील देश जोखिम वाले देश हैं जिनमें भारत भी शामिल है। इस फंड के सद्भावनापूर्ण उपयोग से कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी लायी जा सकती है। कई विकासशील देश जोखिम के देश हैं, उन्हें मदद की जरूरत है। भारत मंे अधिसंख्य जनसंख्या जोखिम भरे क्षेत्रों में रहती है। विकसित देशों को इस संबंध में अपनी रूचि दिखानी होगी। इस काॅप सम्मेलन में इन देशों ने सहमति प्रकट की है जो अच्छा संकेत हैं।

जलवायु परिवर्तन कोष में धन के उपयोग के लिए कार्बन मार्केट की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस मार्केट का ड्राफ्ट बनाकर संस्थागत संरचना व निर्धारण तय कर वित्त वितरण में तेजी लानी होगी। निर्धारित देशों को वर्ष 2025 तक कार्बन डाई आक्साईड के कार्यान्वयन में अंतर कम करना होगा। विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जरूरत है। काॅप .28 सम्मेलन के संकेत अच्छे हैं किन्तु इसमें विकसित देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है। (हिफी)

(बृजमोहन पन्त-हिफी फीचर)

 

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