लेखक की कलमसम-सामयिक

कश्मीर में शाह ने तोड़ीं दीवारें

 

हमारे देश का ही प्रमुख अंग होते हुए भी जम्मू-कश्मीर अलग-थलग था। यहां पर कई दीवारें थीं। ये दीवारें किसकी गलती से खड़ी हुईं, उन पर बहस करना बेमानी है। राजनीतिकों को सियासी फायदा जरूर मिल सकता है लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी था। उन दीवारों को तोड़ना। जम्मू-कश्मीर का अलग विधान बनाया गया। वहां के मूल निवासी ही उसके सर्वेसर्वा माने गये। दूसरे राज्यों से गये लोग वहां घर नहीं बनवा सकते थे, नौकरी नहीं कर सकते थे। संविधान की धारा 370 के तहत कई अधिकार मिले थे जो अन्य राज्यों के निवासी और मौजूदा समय मंे जम्मू-कश्मीर मंे रहने वालों के लिए दीवारों सरीखे थे। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक-2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 को लोकसभा मंे पारित करवा कर इन दीवारों को तोड़ दिया है। अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर मंे इन दीवारों के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार बताया है।

लोकसभा मंे 6 दिसम्बर 2023 को जम्मू-कश्मीर के मामले मंे दो विधेयक पारित किये गये हैं। लोकसभा मंे पारित किया गया जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम- 2004 में संशोधन करना है। नये विधेयक के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर मंे भी अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अन्य सामाजिक और पिछड़े वर्ग के लोगों को नौकरियों और व्यावसायिक संस्थानों मंे आरक्षण मिल सकेगा। जम्मू-कश्मीर मंे रह रहे अनुसूचित जाति के लोग वर्षों से सफाई आदि का कार्य कर रहे थे लेकिन उन लोगों को वहां नौकरियों मंे आरक्षण की सुविधा नहीं मिल रही थी जबकि देश के अन्य राज्यों मंे उनको यह सुविधा मिलती है। ऐसे लोगों के विकास मंे जम्मू-कश्मीर का पुराना कानून बाधा बना हुआ था। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उसको तोड़ दिया है।

इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक से जम्मू-कश्मीर मंे विधानसभा सीटों की कुल संख्या मंे अब बढ़ोत्तरी हो जाएगी। राज्य की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए छोटे-छोटे क्ष़्ोत्रों को भी जनप्रतिनिधि की दरकार थी। इसी को ध्यान में रखते हएु केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लेाकसभा मंे जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पारित कराया है। इस विधेयक के पारित होने के बाद जम्मू-कश्मीर मंे अब विधानसभा सीटों की संख्या 90 हो जाएगी। अब तक वहां विधानसभा सीटों की संख्या 83 थी। आरक्षण तो था ही नहीं। अब नये विधेयक के कानून बनते ही अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटें और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित हो जाएंगी। इसका मतलब है कि अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा मंे 7 विधायक अनुसूचित जाति के और 9 विधायक अनुसूचित जनजाति के निश्चित रूप से होंगे। सामान्य वर्ग से भी इन जातियों के लोग चुनाव लड़ सकेंगे। जाहिर है कि विधानसभा मंे प्रतिनिधित्व बढ़ने से वे लोग अपनी-अपनी जाति के कल्याण की मांग सदन में करंेंगे और उनकी समस्याओं की तरफ आवाज भी उठाएंगे।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से जुड़े इन दोनों विधेयकों पर चर्चा के दौरान विपक्ष द्वारा उठाए गये सवालों का जवाब भी दिया। संदर्भ कश्मीर का था, इसलिए कांग्रेस के आईकाॅन रहे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को कठघरे मंे खड़ा किया। अमित शाह ने कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) का मामला पैदा ही नहीं होता अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पाक अधिकृत पंजाब तक भारतीय सेना के पहुंचने पर सीज फायर न कर दिया होता। तीन दिन बाद सीजफायर अगर होता तो आज पाकिस्तान के कब्जे मंे कश्मीर का जो हिस्सा है, वहां भारतीय तिरंगा ही फहरा रहा होता।

कश्मीर को ही लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू की एक और गलती, जिसे अमित शाह ब्लंडर बताते हैं, का उल्लेख भी केन्द्रीय गृहमंत्री ने किया। उन्होंने कहा जम्मू-कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ मंे चैप्टर 151 के तहत इस मामले को ले जाने की सहमति देनी थी लेकिन पंडित नेहरू ने चैप्टर 35 के तहत कश्मीर का विवाद लटका दिया। अमित शाह ने कांग्रेसियों के विरोध करने पर याद दिलाया कि पंडित नेहरू ने खुद माना था कि जल्द ही संघर्ष विराम और मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) मंे जाना गलती थी। दरअसल, लोकसभा में जब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह कांगे्रस को चुभने वाले जवाब दे रहे थे, तब कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चैधरी ने अमित शाह पर गलत बयानी का आरोप लगाया था। कांग्रेस सदस्यों ने अमित शाह के बयान के विरोध मंे लोकसभा से बहिर्गमन भी किया। कांग्रेस सांसदों के बहिर्गमन पर अमित शाह ने कहा कि मुझे यह पहले से ही पता था कि कांग्रेस सांसद कश्मीर पर ज्वलंत सवालों के जवाब का सामना नहीं कर पाएंगे। अमित शाह ने कहा कि अगर पंडित नेहरू संघर्ष विराम के लिए तीन दिन और इंतजार कर लेते तो कश्मीर का पीओके वाला हिस्सा भी हमारे पास ही होता।

राजनीति में तर्क भी अलग होते हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री का तर्क उनके पक्ष को मजबूत करता है लेकिन सच्चाई को मजबूत नहीं करता। इसका उदाहरण क्रिकेट की बल्लेबाजी से देना काफी दिलचस्प होगा। बल्लेबाज सनसनाती गेंद पर पूरी क्षमता और विवेक से प्रहार करता है लेकिन कभी वह गेंद बाउंड्री क्रास कर सिक्सर बन जाती है तो कभी हवा मंे जाकर कैच आउट भी करा देती है। आउट होने पर समीक्षक कहते हैं कि इस गेंद को ऐसे नहीं ऐसे खेलना चाहिए था लेकिन उस बल्लेबाज को जो उचित लगा, वही उसने किया था। यही स्थिति 1947 में भारत की थी। देश की स्वतंत्रता की तारीख भी टाली जा रही थी लेकिन ब्रिटेन के धूर्त शासकों ने इसीलिए आजादी की घोषणा कर दी ताकि मोहम्मद अली जिन्ना जीवित रहते ही पाकिस्तान बनवा लें। सभी जानते थे कि जिन्ना गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और जल्दी ही वह अल्लाह को प्यारे भी हो गये थे। मरने से पहले उन्होंने वो विष वृक्ष बो दिया जो भारत के लिए नासूर बना हुआ है। उस समय पंडित नेहरू बहुत ज्यादा सख्त कदम नहीं उठा सकते थे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय दबाव था। आज हम ऐसे किसी भी दबाव से मुक्त हैं, इसलिए अमित शाह को यह कहने का पूरा हक मिला है।

बहरहाल, जम्मू-कश्मीर मंे 5 अगस्त 2019 को जो सुखद बदलाव आया था और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने धारा-370 को निष्प्रभावी करवा कर जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित राज्य बना दिया था, उसमंे अब और बेहतरी की संभावनाएं हैं। जम्मू-कश्मीर के इतिहास मंे पहली बार 9 सीटें आदिवासियों अर्थात् एसटी के लिए आरक्षित हो गयी हैं। हिन्दू बहल माना जाने वाला जम्मू में अब विधायकों के लिए 43 सीटें होेंगी जबकि पहले 37 सीटें थीं। कश्मीर मंे पहले 46 सीटें थीं जबकि अब उनमंे एक विधायक के और बनने की व्यवस्था कर दी गयी है। यहां 47 विधायक हो सकेंगे। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर मंे 90 विधायक और पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 विधायकों की सीटें आारक्षित हैं। पहले जम्मू और कश्मीर विधानसभा मंे 107 सीटें थीं जो अब बढ़कर 114 हो गयी हैं।
इस नये विधेयक के पहले 2 विधायक मनोनीत किये जाते थे जबकि अब 5 विधायकों को मनोनीत किया जा सकेगा। जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर मंे बदलाव का बड़ा हिस्सा राजनीति मंे शामिल है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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