सम-सामयिक

सवालिया घेरे में पाश्चात्य आकलन

 

लंदन रिटर्न, अमेरिका रिटर्न जैसे शब्द आज भी आकर्षित करते हैं। हमलोग उसे विशिष्ट मान लेते हैं। वह लंदन से पढ़ कर आया है अथवा वहां काम करता था। यह भावना हम भारतीयों को कमतर अंाकती है। हमारी भारतीय शिक्षा और नौकरियां दोयम दर्जे की क्यों मान ली गयी, पाश्चात्य आकलन को हम पत्थर की लकीर समझने लगे। अब इसकी सच्चाई धीरे – धीरेसामने आ रही है। अमेरिकी शिक्षा बिंद और समाज शास्त्री सेल्बाटोर बेबोन्स ने इस भ्रांति को तोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने पश्चिमी सर्वेक्षणों पर सवाल उठाया भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर पश्चिमी देशों ने अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में भारत की स्थिति खराब बतायी गयी है। जबकि अमेरिकी शिक्षाविद बेबोन्स ने पश्चिमी देशों के सर्वेक्षण पर ही सवाल उठाया है। इसी तरह अभी हाल में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की शराब घोटाले मामले में, गिरफ्तारी पर अमेरिका और जर्मन के विदेश विभाग ने टिप्पणी करके देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप किया है। भारत ने उनको करारा जवाब भी दिया है। अमेरिकी समाज शास्त्री बेबोन्स ने भारत के लोकतंत्र की जिस तरह तारीफ की है, उससे तो यही लगता है कि पाश्चात्य देश भारत की प्रगति से खुश नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प जताया है। भारत की बढ़ती आर्थिक और सामाजिक ताकत का लोहा तो चीन भी मानने लगा है।

अमेरिकी शिक्षाविद् सेल्वाटोर बेबोन्स ने उन पश्चिमी सर्वेक्षणों पर सवाल उठाया जो देशों की प्रेस की स्वतंत्रता पर अपने विश्लेषण प्रकाशित करतें हैं। उन्होंने 2024 के एक ऐसे अध्ययन का वर्णन किया जिसमें भारत को खराब रेटिंग दी गई थी। राइजिंग भारत समिट में बोलते हुए, उन्होंने वी-डेम इंस्टीट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2024 का जिक्र करते हुए आश्चर्य जताया कि ऐसे सर्वेक्षणों में आंकड़े कहाँ से लिये गये थे और क्या भारत के मुख्यधारा के पत्रकारों से पूछताछ की गई थी, जिसमें भारत को “सबसे खराब निरंकुश राष्ट्रों’ में से एक” कहा गया था। सेल्वाटोर बेबोन्स ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक का मूल्यांकन अक्सर देश में सीधे सर्वेक्षण करने के बजाय भारतीय पत्रकारों को भेजे गए सर्वेक्षणों पर निर्भर करता है. दुनिया भर में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर नजर रखने वाले संस्थान की इस महीने की शुरुआत में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 फीसद आबादी के साथ, भारत उन देशों में रहने वाली लगभग आधी आबादी का हिस्सा है जो निरंकुश होते जा रहे हैं।

बैबोन्स ने कहा कि भले ही वी-डेम इंस्टीट्यूट, स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय से संबंधित एक प्रतिष्ठित यूरोपीय शोध संस्थान है, परन्तु मुझे उनकी कार्यप्रणाली पर संदेह है। उन्होंने कहा कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन अक्सर राजनीतिक वैज्ञानिकों और ‘कट्टरपंथी, मार्क्सवादी’ वेबसाइट पत्रकारों द्वारा किया जाता है और यह प्रत्यक्ष सर्वेक्षणों पर आधारित नहीं है जिसमें मुख्यधारा के प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में काम करने वाले पत्रकार शामिल होते हैं। बेबोन्स ने कहा लोकतंत्र को मापने के लिए उनके पास एक अत्यधिक त्रुटिपूर्ण सांख्यिकीय पद्धति है। उनके पाँच प्रमुख संकेतक हैं। उनमें से दो हैं ‘क्या किसी देश में चुनाव होते हैं’ और ‘क्या सभी को मतदान करने की अनुमति है’। और इनका पूरी तरह से प्रो फॉर्मा के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। उदाहरण के लिए, वियतनाम को अपने चुनावों के लिए एक आदर्श स्कोर मिलता है, इस तथ्य के बावजूद कि इसमें केवल एक राजनीतिक दल को चुनाव लड़ने की अनुमति है।

उन्होंने कहा कि, वी-डेम ने हाल ही में भारत को सम्पूर्ण विश्व में 110वां स्थान दिया है, जो मुझे लगता है कि एक मजाक है। लेकिन यह रेटिंग वी-डेम स्वयं नहीं कर रहा है। वी-डेम द्वारा किये जा रहे अधिकांश भेदभाव उनके सर्वेक्षण परिणामों पर आधारित है। वे ज्यादातर राजनीतिक वैज्ञानिकों के विचारों के आधार पर सर्वेक्षण करते हैं। अतः, मुख्य रूप से भारतीय राजनीतिक वैज्ञानिक वी-डेम का उपयोग करके भारत का मूल्यांकन (श्रृंखलात्मक आनुभविक संकेतकों के आधार) कर रहे हैं। बेबोन्स ने यह भी कहा कि यह तथ्य चैंकाने वाला था कि हांगकांग मीडिया पर कार्रवाई के बावजूद प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग में भारत हांगकांग से 20 स्थान नीचे था, जो कभी स्वतंत्र माना जाता था, लेकिन कई मीडिया संस्थानों को नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का उल्लंघन करने के लिए बंद होने पर मजबूर किया जा रहा है।

अमेरिकी समाजशास्त्री और सिडनी विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर साल्वाटोर बेबोन्स ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र उत्तर-औपनिवेशिक, अत्यधिक पारंपरिक देश है जिसने उदार लोकतंत्र को चलाने के तरीके से संबंधित पुरानी प्रचलित धारणाओं को तोड़ दिया है। बेबोन्स ने कहा, “भारत में एक लोकतंत्र है, एक उदार लोकतंत्र है, एक मजबूत उदार लोकतंत्र है, भारत के आलोचक यह कहना पसंद करते हैं कि भारत एक उदार लोकतंत्र नहीं है। भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और आस्ट्रेलिया की संस्थाओं के अनुरूप बनाई गई हैं। भारत के संस्थान दुनिया के किसी भी क्षेत्र में अप्रासंगिक नहीं होंगे। वास्तव में, भारत दुनिया का एकमात्र उत्तर-औपनिवेशिक, अत्यधिक पारंपरिक देश है जिसने उदार लोकतंत्र को चलाने के तरीके से संबंधित पुरानी प्रचलित धारणाओं को तोड़ दिया है।

हाल ही में लागू नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में बैबोन्स ने कहा कि यह एक अच्छी नीति है। और यह केवल भारत में ही संभव है क्योंकि भारत में एक समावेशी समाज एवं समावेशी लोकतंत्र है। नागरिकता संशोधन अधिनियम इसलिए है क्योंकि पूरे क्षेत्र के लोग, न केवल इस अधिनियम में शामिल तीन देश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश बल्कि पूरे क्षेत्र के लोग भारत में शरण लेना चाहते हैं क्योंकि भारत की स्वतंत्रता की परंपराएं हैं। बबोन्स ने बताया कि पश्चिमी मीडिया में देश के बारे में ज्यादातर नकारात्मक रिपोर्टिंग भारतीय और भारतीय मूल के बुद्धिजीवियों से आती है।

भारत की बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक ताकत का लोहा अब चीन भी मानने लगा है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में एक लेख लिखा गया। इस लेख में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की आर्थिक और विदेश नीति में सकारात्मक बदलाव की तारीफ की गई है। लेख के अनुसार, भारत अब रणनीतिक रूप से ज्यादा विश्वास से भरा हुआ है और अपने भारत नैरेटिव के विकास के लिए ज्यादा सक्रियता से काम कर रहा है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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