राजनीति

…घर में घुसकर मारता है नया भारत!

 

हाल ही में ब्रिटेन के बड़े अखबार में प्रकाशित एक लेख काफी चर्चा का विषय बना हुआ है ब्रिटिश अखबार गार्डियन ने अपनी एक रिपोर्ट में पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के हवाले से यह दावा किया है कि पाकिस्तान में पिछले 2 सालों में मारे गए कम से कम 20 लोगों के पीछे भारतीय रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग (रॉ) का हाथ है। गार्डियन का खुलासा सही हो या गलत इस पर चर्चा तो बाद में होगी पर यह तय है कि यह खबरें भारत में लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए बूस्टर साबित हो सकती है। पुलवामा हमले का बदला लेते हुए भारत ने फरवरी 2019 में जब पाकिस्तान के बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक की, तो उसने लोकसभा चुनाव का रुख भी मोड़ दिया था। भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हमेशा से वोटरों के लिए संवेदनशील रहा है। इसीलिए मोदी के नाम पर 56 इंच की छाती वाला जुमला गढ़ा गया है। पाकिस्तान में 20 आतंकियों के खात्मे पर इंग्लैंड के प्रमुख अखबार गार्डियन ने जो खुलासा किया है, वह बीजेपी के चुनाव में रंग भरने का काम करेगा।

गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में हुई करीब 20 हत्याएं संयुक्त अरब अमीरात से संचालित भारतीय खुफिया एजेंसियों के स्लीपर सेल के जरिए अंजाम दी गयी। हत्याओं को अंजाम देने के लिए स्थानीय अपराधियों या गरीब पाकिस्तानियों को लाखों रुपये देने का आरोप है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय एजेंटों ने हत्याओं को अंजाम देने के लिए कथित तौर पर जिहादियों को भी भर्ती किया, उन्हें यह विश्वास दिलाया गया कि वे काफिरों को मार रहे हैं। भारत ने इजरायल की मोसाद और रूस की केजीबी जैसी खुफिया एजेंसियों से प्रेरणा ली।ये विदेशी एजेंसियां विदेशी धरती पर अपना काम करने के लिए कुख्यात रही हैं। अखबार कहता है कि सऊदी पत्रकार और असंतुष्ट जमाल खशोगी जिनकी 2018 में सऊदी दूतावास में हत्या कर दी गई थी। इस घटना से रॉ के अधिकारियों ने प्रेरणा ली। एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक बैठक में कहा कि अगर सऊदी ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? रिपोर्ट के अनुसार जमाल खशोगी की हत्या के कुछ महीने बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में खुफिया विभाग के शीर्ष अधिकारियों के बीच इस बात पर बहस हुई थी कि इस मामले से कैसे कुछ सीखा जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार बैठक में कहा गया कि सऊदी ने जो किया वह बहुत प्रभावी था। आप न केवल अपने दुश्मन से छुटकारा पाते हैं बल्कि आपके खिलाफ काम करने वाले लोगों को एक भयावह संदेश, चेतावनी भी भेजते हैं। हर खुफिया एजेंसी ऐसा करती रही है। अपने शत्रुओं पर शक्ति डाले बिना हमारा देश मजबूत नहीं हो सकता। भारत ने इजरायल की मोसाद और रूस की केजीबी जैसी खुफिया एजेंसियों से प्रेरणा ली। ये विदेशी एजेंसियां विदेशी धरती पर अपना काम करने के लिए कुख्यात रही हैं। अखबार कहता है कि सऊदी पत्रकार और असंतुष्ट जमाल खशोगी जिनकी 2018 में सऊदी दूतावास में हत्या कर दी गई थी। इस घटना से रॉ के अधिकारियों ने प्रेरणा ली।एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक बैठक में कहा कि अगर सऊदी ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? रिपोर्ट के अनुसार जमाल खशोगी की हत्या के कुछ महीने बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में खुफिया विभाग के शीर्ष अधिकारियों के बीच इस बात पर बहस हुई थी कि इस मामले से कैसे कुछ सीखा जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार बैठक में कहा गया कि सऊदी ने जो किया वह बहुत प्रभावी था। आप न केवल अपने दुश्मन से छुटकारा पाते हैं बल्कि आपके खिलाफ काम करने वाले लोगों को एक भयावह संदेश, चेतावनी भी भेजते हैं। हर खुफिया एजेंसी ऐसा करती रही है। अपने शत्रुओं पर शक्ति डाले बिना हमारा देश मजबूत नहीं हो सकता। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी जांचकर्ताओं ने आरोप लगाया कि हत्याओं को अंजाम देने के लिए अक्सर अपराधियों या गरीब स्थानीय लोगों को लाखों रुपये का भुगतान किया जाता था। दस्तावेजों में दावा किया कि हत्याओं की निगरानी करने वाले रॉ संचालकों की बैठकें नेपाल, मालदीव और मॉरीशस में भी होती रही है। रिपोर्ट हालांकि पाकिस्तानी और भारतीय खुफिया विभाग के पूर्व अफसरों से बातचीत पर आधारित है लेकिन रिपोर्ट पढकर ऐसा नहीं लगता है कि सीधे-सीधे भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई है। रिपोर्ट में इस तरह के तर्क रखे गए हैं कि भारत हो या कोई भी देश अपने देश में हो रहे आतंकी कार्रवाई को रोकने के लिए अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर इस तरह कदम उठाता है। किंग्स कॉलेज लंदन के राजनीतिक वैज्ञानिक वाल्टर लाडविग कहते हैं कि रणनीति में कथित बदलाव मोदी की विदेश नीति के प्रति अधिक आक्रामक दृष्टिकोण के अनुरूप है और जिस तरह पश्चिमी देशों पर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर विदेशों में हत्याओं का आरोप लगाया गया है, वैसे ही कुछ भारत ने भी किया।

दरअसल लम्बे समय से आतंकवाद के दंश झेल रही भारत सरकार को भी लगा कि भारत के पास भी ऐसा करने का अधिकार हैं। अब विदेशों में हत्याओं का आरोप लगाया गया है कि इसी पैटर्न पर कुछ भारत ने भी किया। आप को बता दें कि जिस दिन यह रिपोर्ट छपी है, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के जमुई लोकसभा में अरुण भारती के लिए वोट मांगते हुए कुछ ऐसा कहते हैं जिस पर यह रिपोर्ट मुहर लगाती है। क्या यह महज संयोग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान का बिना नाम लिये बिना कहते हैं कि छोटे-छोटे देश जो आज आटे के लिए तरस रहे हैं, उनके आतंकी हम पर हमला करके चले जाते थे और तब की कांग्रेस दूसरे देशों के पास शिकायत लेकर जाती थी। पीएम मोदी ने कहा ऐसे नहीं चलेगा। आज का भारत घर में घुसकर मारता है। आज का भारत दुनिया को दिशा दिखाता है।

सवाल फिर ज्यों का त्यों वहीं खड़ा है कि आखिर देश में आम चुनाव के ठीक पहले एक विदेशी अखबार में एक जलते विषय पर ऐसे आलेख प्रकाशित करने के पीछे क्या कोई छिपा मंतव्य है? क्या गार्डियन पर भी विपक्ष गोदी मीडिया होने की तोहमत लगाएगा? क्या भाजपा के रणनीतिकार अब विदेशी मीडिया को भी साध रहे हैं? बेशक राष्ट्रवादी विचारों वाले वोटर को इस तरह की एक विदेशी अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट मनमोहक लग सकती है? भाजपा गार्डियन के इस लेख का इस्तेमाल सर्जिकल स्ट्राइक की पुष्टि के लिए कर रही है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने चुनावी भाषण में इस लेख का हवाला देते हुए जमकर जिक्र कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि गार्डियन गोदी मीडिया तो नही है? लेकिन यदि भारत सरकार पर विदेशों में अपने दुश्मनों को भाड़े के हत्यारों के मार्फत निबटाने का आरोप सही साबित होता है तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसके दूरगामी विपरीत परिणाम भी हो सकते है और फिर हम किस मुंह से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टुडो के उन आरोपों को गलत ठहराएंगे जो उन्होंने कनाडा में मारे गए खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों की हत्या पर लगाए थे? बेशक देश की अस्मिता और सुरक्षा के लिए साम, दाम, दंड, भेद अंगीकार करना अनुचित नहीं है लेकिन तथापि भारत को लक्ष्य हासिल करने के लिए बहुत संतुलन बनाकर चलना होगा। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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