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दुल्ला भट्टी की याद दिलाता है पर्व

 

योगी आदित्यनाथ अक्सर यह बात कहते हैं जिसने अपने पूर्वजों को भुला दिया, उसकी संस्कृति नष्ट हो जाती है। हमारे गौरवशाली अतीत को बनाने वाले युग-युग तक प्रेरणा देते रहेंगे। सिख समाज मंे मनाया जाने वाला पर्व लोहड़ी भी ऐसी ही गौरव गाथा की याद दिलाता है। मुगलों के शासन में हम पर बहुत अत्याचार किये गये। उन्होंने हमारे धार्मिक स्थल ही नहीं तोड़े बल्कि मां-बेटियों की इज्जत के साथ भी खिलवाड़ किया। मुगलों की इस हैवानियत का विरोध हिन्दू-युवाओं ने किया था। ऐसे ही वीर युवा थे पंजाब के दुल्ला भट्टी। दुल्ला भट्टी ने पंजाब की कितनी ही लड़कियों को मुगलों की दरिंदगी से बचाया था। अमीर सौदागरों से छुड़ाकर कितनी ही लड़कियों की शादी हिन्दुओं से करवाई थी। उसी समय से दुल्ला भट्टी को नायक माना गया और आज भी युवाओं को उनसे पे्ररणा मिलती है। लोहड़ी की एक कथा प्रजापति दक्ष से भी जुड़ी है। वैसे भी भारत उत्सव प्रिय देश है और उल्लास नहीं तो जीवन कैसा? कृषि प्रधान देश मंे फसल पक कर तैयार हुई तो उत्साह बनाया जाता है। लोहड़ी पर भी फसल तैयार मिलती है।

लोहड़ी का पर्व इस बार 14 जनवरी दिन रविवार को मनाया जाएगा। उत्तर भारत के प्रमुख पर्वों में से एक लोहड़ी सिखों और पंजाबियों के लिए बेहद अहम होता है। यह पर्व हर साल जनवरी माह में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इसको मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। असल में लोहड़ी के पर्व को मुख्य रूप से नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन से ही ठंड का प्रकोप कम और रातें छोटी होने लगती हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, मकर संक्रांति पर जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन होता तो उससे एक दिन पूर्व रात्रि में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन आग का अलाव लगाया जाता है। इसके बाद चारों तरफ लोग एकत्र होते हैं और अग्नि में रेवड़ी, खील, गेहूं की बालियां और मूंगफली डालकर जीवन सुखी होने की कामना करते हैं।

पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। चूंकि, इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 को है। इसलिए लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन प्रदोष काल लोहड़ी का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा और रात को 8 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगा। सिख समुदाय में लोहड़ी पर्व का बड़ा महत्व है। यह पर्व किसानों के लिए बेहद खास होता है। लोहड़ी के दिन सूर्यदेव और अग्नि देवता की पूजा का विधान है। इस दिन किसान अच्छी फसल की कामना करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं। लोहड़ी के दिन ही किसान अपने फसल की कटाई शुरू करते हैं। इसी खुशी में लोहड़ी की अग्नि में रबी की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। इसके साथ ही महिलाएं लोकगीत गाकर घर में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है। मान्यता के अनुसार मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में ही रहता है। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था।

पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रजापति दक्ष भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह होने से खुश नहीं थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ करवाया। इस यज्ञ में प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रण नहीं दिया। तब मां सती ने भगवान शिव से पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। इस पर महादेव ने कहा कि आमंत्रण के बिना किसी के कार्यक्रम में जाना ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में वहां जाने से अपमान होता है। लेकिन मां सती के न मानने पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। जब मां सती यज्ञ में शामिल होने पहुंचीं, तो वहां शिव जी को लेकर अपमानजनक शब्द सुनकर वे दुखी हुईं। तब मां सती अपने पिता के द्वारा करवाए गए यज्ञ कुंड में समा गई थीं। इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष मां सती की याद में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

इस त्यौहार को पंजाब में फसल काटने के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान आग जलाकर इसके अंदर गुड़, गजक, तिल आदि डाली जाती हैं। लोहड़ी को बहुत सालों से मनाया जाता रहा है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो लोहड़ी का त्योहार हिंदू कैलेंडर के पौष महीने में आता है। इसके बाद से सर्दियां घटनी शुरू हो जाती है और नई फसल का समय शुरू हो जाता है। लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर इसके आसपास नाचते-गाते हैं। आग में गुड़, तिल, रेवड़ी गजक आदि एक दूसरे को दी जाती है। यह सब चीजें आपस में बांटी भी जाती हैं। कई लोग इन्हें घर-घर जाकर भी बांटते हैं। इसके अलावा पॉप कॉर्न, तिल के लड्डू, मूंगफली की पट्टी आदि भी बांटी जाती है। यह त्योहार आग जलाकर खासतौर पर शाम को मनाया जाता है

परम्परा है कि जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर-बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से मोहमाया या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं। शहरों के शरारती लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर लोहड़ी से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। यह लोहड़ी व्याहना कहलाता है। कई बार छीना झपटी में सिर फुटौवल भी हो जाती है। मँहगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपलों के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी की चीजें उठाकर जला देने की शरारतें भी चल पड़ी हैं। बहरहाल, लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरियाणा के लोगांे का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। पंजाब, हरियाणा के अलावा दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में भी धूमधाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता है। (हिफी)

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)

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