होलिकोत्सव पर विशेष

चेहरे पर घूंघट, हाथों मंे लट्ठ

यूपी मंे होली के मनोरंजक स्वरूप

 

हम भारतीय उत्सवधर्मी हैं। खुशी जताने के लिए मौके की तलाश करते रहते हैं। साल भार त्योहार मनाये जाते हैं। इन त्योहारों मंे होली का विशेष महत्व है। बसंत मंे हवा और प्रकृति दोनों मतवाली होती हैं। ऐसे ही मतवाले मौसम में फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका दहन और अगले दिन रंग खेलने का त्योहार मनाया जाता है। अबीर-गुलाल की होली तो सामान्य है लेकिन यूपी में ही होली का मनोरंजक स्वरूप देखा जा सकता है। गोपियों के साथ मस्ती से होली खेलने वाले कान्हा की नगरी ब्रज के बरसाने में तो लट्ठमार होली दुनिया भरा मंे मशहूर है। दूर-दूर से लोग लट्ठमार होली देखने के लिए बरसाने मंे पहुंचते हैं। इसी प्रकार फिरोजाबाद के गांव चुलावली में पैनामार होली खेलने की परम्परा है। होली दहन के बाद अगले दिन गांव की महिलाएं और पुरुष अलग-अलग टोली बनाकर निकलते हैं। पुरुष महिलाओं को रंग लगाने का प्रयास करते हैं और महिलाएं लकड़ी मंे पैना बांधकर (चमड़े का पट्टा) पुरुषों को पीटती हैं। यह होली बाकायदा एक प्रतियोगिता की तरह होती है। विजेता पुरुष और महिला को साड़ी और नकद रुपये पुरस्कार के रूप में दिये जाते हैं। बरसाने की लट्ठमार होली का तो जवाब ही नहीं होता। चेहरे पर घूंघट चांद जैसे मुखड़े की झलक दिखाता है तो हाथ का लट्ठ होलिहारों की कमर तोड़ता है। इसके साथ ही फूलों और लड्डुओं की होली भी खेली जाती है।
होली का पावन पर्व फाल्गुन माह में देश भर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन इस पर्व की खास बात यह है कि देश के कोने कोने में अलग अलग तरह की परंपराओं के साथ इसे मनाया जाता है। वहीं इस पर्व की सबसे पहले शुरुआत ब्रज क्षेत्र से होती है, जहां अलग-अलग तरह की परंपराओं के साथ होली की शुरुआत होती है। यूपी के फिरोजाबाद शहर में भी एक अनोखी परंपरा है। जहां एक गांव में होली एक अलग तरह की परंपरा के साथ खेली जाती है। गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ पैनामार होली खेलती हैं। यहां की पैनामार होली दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।

फिरोजाबाद के टुंडला रेलवे स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित गांव चुलावली कि उनके गांव में कई पीढ़ियों से पैनामार होली खेलने की परंपरा है। होली दहन होने के बाद गांव की सभी महिलाएं और पुरुष इस परंपरा को निभाते हैं। उन्होंने बताया कि महिलाएं लकड़ी में पैना बांधकर रंग लगाने आ रहे पुरुषों की पिटाई करती है। वहीं, पुरुष भी महिलाओं को रंग लगाने की ताक में रहते हैं। सुबह होते ही गांव के चबूतरे पर महिलाओं की टोली निकल पड़ती है और पुरुष भी अपनी अलग-अलग टोली बनाकर गांव में घूमते हैं। गांव में होली की इस परंपरा का नजारा दिनभर देखने को मिलता है। वहीं प्रधान ने कहा कि शाम को इसमें विजेता पुरुष और महिला को इनाम के रूप में साड़ी और नगद रूपए का पुरस्कार भी दिया जाता हैचुलावली गांव की एक वृद्ध महिला ने बताया की उनके गांव में पुरखों के जमाने से पैनामार होली खेली जा रही है। इसमें महिलाएं बैल को हांकने वाले पैने से पुरुषों के साथ होली खेलती है। वहीं नौजवान पुरुष भी महिलाओं को खूब रंग लगाते हैं और पैना खाते हैं। इसके अलावा गांव की एक और महिला ने बताया कि पैनामार होली की यह परंपरा हजारों साल पुरानी है। इस परंपरा को सभी पुरुष और महिलाएं मिलकर निभाते हैं। वहीं इस होली का आनंद लेने के लिए अन्य गांवों से भी लोग आते हैं और पैनामार होली का आनंद लेते हैं। पूरे गांव में टोलियां बनाकर लोग घूमते हैं और रंग, गुलाल लगाते हैं। सभी कलाओं से परिपूर्ण कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में होली का प्रमुख त्योहार शुरू हो गया है और 18 मार्च को राधारानी की नगरी बरसाना में बड़े धूमधाम से लट्ठमार होली खेली गयी। इसके अगले दिन नंदगांव में लट्ठमार होली खेली गयी। इस दिन बरसाना में होली मनाने के लिए नंदगांव के युवक आते हैं और बरसाने की हुरियारिन लट्ठ बरसाती हैं।

बरसाना की प्रसिद्ध लट्ठमार होली में नंदगांव के हुरयारे लट्ठमार होली खेलने के लिए बरसाना आते हैं। यहां पर महिलाएं (हुरियारिन) रंग, गुलाल, मिठाई के अलावा लट्ठ से उनका स्वागत करती हैं।भारत में विभिन्न तरह के तीज त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार है होली का पर्व। देशभर में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन कान्हा की नगरी में होली का पर्व अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। फूलों की होली के साथ शुरू हुआ ये त्योहार रंगों की होली के साथ समाप्त होता है। राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला ये पर्व दुनियाभर में मशहूर है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग मथुरा, बरसाना पहुंचते हैं। होली के इस पर्व में महिला एक दिन लट्ठमार होली खेलती है। इस दिन महिलाएं पुरुषों के ऊपर लाठी बरसाती है और खुशी से हर कोई रस्म को निभाता है। पंचांग के अनुसार, बरसाना में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, लट्ठमार होली द्वापर युग से शुरू हुई थी। नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं के साथ राधा रानी के गांव बरसाना जाया करते हैं।

वहीं पर राधा रानी और गोपियां श्री कृष्ण और उनके सखाओं की शरारतों से परेशान होकर उन्हें सबक सिखाने के लिए लाठियां बरसाती थीं। ऐसे में कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते थे। ऐसे ही धीरे-धीरे इस परंपरा की शुरुआत हो गई है जिसे बरसाना में धूमधाम से मनाते हैं।

बता दें कि लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव के लोगों के बीच खेली जाती है। लट्ठमार होली के एक दिन पहले फाग निमंत्रण दिया जा रहा है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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