प्रेरणास्पद लघुकथा बच्चो का कोना

मोर का मूल्य

 

जिस प्रकार से अकबर के नौ रत्नों में बीरबल को अपनी बुद्धिमता और हाजिर जवाबी के लिये जाना जाता है। वैसे ही दक्षिण भारत में तेनालीराम अथवा तेनाली रोमलिंगन की भी प्रतिष्ठा है। वे विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय की सभा में सबसे उत्तम रत्न कहलाते थे। उनके किस्सों में जहां उनकी तुरत बुद्धि और चतुराई झलकती है वहीं इनसे हमें कई प्रकार की सीख भी मिलती है। तेनाली राम ने हमेशा ही राज्य में अत्याचारियों तथा धूर्तों का पर्दाफाश किया और उनकी असलियत से लोगों को अवगत कराया। उनकी कहानियां आज भी उतनी ही मनोरंजक और शिक्षाप्रद हैं जितनी तब थीं। प्रस्तुत कथा उनकी ऐसी ही बुद्धिमता और चतुराई को दर्शाती है-
महाराजा कृष्णदेव राय को अदभुत व विलक्षण वस्तुएं एकत्रित करने का बेदह शौक था। इसके लिए दरबारियों में होड़ लगी रहती थी कि वे दुर्लभ से दुर्लभ वस्तुएं महाराज की सेवा में प्रस्तुत करें और भारी पुरस्कार पाएं। कुछ दरबारी मौका पाकर महाराजा को ठगने से भी नहीं चूकते थे। एक दिन एक दुष्ट दरबारी लाल पंखों वाला एक जिंदा मोर लेकर महाराजा की सेवा में हाजिर हुआ और बोला, ‘महाराज! मैंने मैसूर के घने जंगलों में से आपके लिए एक विचित्र मोर मंगवाया है।’
महाराजा लाल पंखों वाले उस मोर को देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने तुरंत आज्ञा दी कि मोर को राज्य-उद्यान में हिफाजत से रखवाया जाय फिर दरबारी से पूछा कि उस मोर की खोज आदि पर उसका कितना धन खर्च हुआ?
‘कुल तीस हजार।’
महाराजा ने आज्ञा दी कि तीस हजार अशरफियां तुंरंत इस दरबारी को अदा की जाएं। फिर दरबारी को आश्वासन दिया कि तुम्हें बाद में पुरस्कार भी दिया जाएगा।
दरबारी को और भला क्या चाहिए था। उसने केवल सौ अशरफियां और थोड़ी-सी अकल ही तो खर्च की थी।
तेनालीराम को यह बात हजम नहीं हो रही थी कि मोर कुदरती लाल पंखों वाला कैसा हो सकता है। उसने दरबारी की तरफ देखा जो कुटिल भाव से उसकी ओर देखकर मुसकरा रहा था। तेनालीराम को समझते देर नहीं लगी। दूसरे दिन तेनालीराम ने उस रंग विशेषज्ञ को खोज निकाला, उसेन मात्र सौ रूपए में उस मोर के पंख रंगे थे।
तेनालीराम ने चार मोर मंगवाकर उन्हें पहले वाले मोर की भांति मंगवाया और चैथे दिन उन्हें लेकर दरबार में उपस्थित होकर बाला? महाराज! हमारे दरबारी मित्र ने तीस हजार अशरफियां खर्च करके लाल पंखों वाला सिर्फ एक मोर ही मंगवाया, मगर मैं चार सौ अशरफियों के चार पैसे ही मोर आपकी सेवा में हाजिर कर रहा हूं।
राजा ने विस्मय से पहले उन मोरों को देखा, फिर प्रश्नवाचक दृष्टि से तेनालीराम और उसके साथ आए व्यक्ति को देखने लगे।
उस दरबारी को तेनालीराम के साथ आए व्यक्ति को देखकर सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। यह वही चित्रकार था जिसे सौ अशरफियां देकर उसने मोर के पंख मंगवाए थे।
राजा ने मोर उद्यान में भिजवा दिए, फिर तेनालीराम से पूछा, तेलानी! यह माजरा क्या है?
‘महाराज! यदि आप इन मोरों की सुंदरता से प्रसन्न होकर किसी को कोई पुरस्कार देना चाहते हैं तो इस चित्रकार को दें, वास्तव में पुरस्कार का वास्तविक अधिकारी यही है। कहकर तेनालीराम ने उन्हें पूरी बात बता दी।
अपने आपको ठगे जाने की बात सुनकर महाराजा गुस्से में आ गए। उन्होंने तुरंत उस दरबारी को दो माह के लिए उसके पद से निलंबित कर दिया तथा तीस हजार अशरफियों के साथ बतौर जुर्माना दस हजार अशरफियां और राजकोश में जमा कराने का आदेश दिया। फिर चित्रकार को बहुत सा इनाम देकर विदा किया और तेनालीराम को भी सम्मानित किया। (हिफी)

 

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