लेखक की कलमविविध

सिद्ध करनी होगी मानवाधिकार दिवस की सार्थकता

 

इस बार 2023 में मानवाधिकार दिवस की थीम सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय है।

मानव अधिकार वे मूल अधिकार हैं जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं। मानवाधिकार मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता हैं। मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं। बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकारों का हकदार है। भारत का स्वतंत्रता आंदोलन मानवाधिकारों के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रहा है। कुछ अधिकार ऐसे होते है जो व्यक्ति को जन्मजात मिलते है। उन अधिकारों का व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म पर कोई असर नहीं पड़ता।

कहने में मानवाधिकार शब्द बहुत बड़ा है क्योंकि मानवाधिकारों से हर व्यक्ति का हित जुड़ा होता है। आज के दौर में कोई भी मानव को उनके वास्तविक अधिकार नहीं देना चाहता है। राजनेता मानव अधिकार की बात तो जोरशोर से करते हैं। मगर जब अधिकार देने की बारी आती है तो पीछे खिसकने लगते हैं। राज नेताओं को पता है कि यदि लोगों को उनके अधिकार मिल गये तो उनकी नेतागिरी बन्द हो जायेगी। हमारे देश के संविधान में मानव को बहुत सारे अधिकार दिये गये हैं। मगर उन पर अमल नहीं हो पाता है। मानव अधिकारों की रक्षा के लिए बनाये गये कानून महज कागजों में सिमट कर रह जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 को विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर प्रथम बार मानवाधिकार व मानव की बुनियादी मुक्ति पर घोषणा की थी। वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष की 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाना तय किया था। 73 वर्ष पहले पारित हुआ विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र एक मील का पत्थर हैं जिसमें समृद्धि, प्रतिष्ठा व शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के प्रति मानव की आकांक्षा प्रतिबिंबित की है। आज यही घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ का एक बुनियादी भाग है। 10 दिसंबर 2023 को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक प्रतिज्ञाओं में से एक मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा की 75वीं वर्षगांठ भी है। इसीलिए इस बार 2023 में मानवाधिकार दिवस की थीम सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय है।

इतिहास गवाह है की भारत ने कभी भी संस्कृति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर दूसरों को अपने अधीन करने की कोशिश नहीं की है। भारत एक ऐसा देश है जिसके मूल में मानवाधिकार की अवधारणा है। भारत के लोग मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प भी लेते हैं। भारत विश्व स्तर पर आज भी मानवाधिकार का समर्थन करता रहा है। मानवाधिकार दिवस की नींव विश्व युद्ध की विभीषिका से झुलस रहे लोगों के दर्द को समझ कर और उसको महसूस कर रखी गई थी। किसी भी इंसान की जिन्दगी, आजादी, बराबरी और सम्मान के अधिकार का नाम ही मानवाधिकार है। भारतीय संविधान इन अधिकारों की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोडने वाले को अदालत सजा भी देती है।

भारत में 28 सितम्बर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया। 12 अक्टूबर 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया। आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं। जैसे बाल मजदूरी, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार। पूरे विश्व में इस बात को अनुभव किया गया है और इसीलिए मानवीय मूल्यों की अवहेलना होने पर वे सक्रिय हो जाते हैं। इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21, 23,24,39,43,45 देश में मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए सुनिश्चित हैं।

भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है। भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी शामिल है। संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी आजादी दी गई है। भारतीय परिदृश्य में इस पर अमल करना थोड़ा मुश्किल है।

आज भी दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो या तो अपने अधिकारों से अनजान है या उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। कभी जात के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर, कभी लिंग भेदभाव के जरिए तो कभी रंग भेद नीति को अपनाकर लोगों के इन अधिकारों को कुचला जा रहा है। हर तबके, हर शहर और दुनिया के कोने-कोने में किसी न किसी वजह से लोगों को बराबरी के हक से महरूम रखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नए परवाज देने में इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है। हर शख्स को बराबरी का अधिकार देना लोकतंत्र का अहम घटक है। यही वजह है कि आज ज्यादातर सरकारें इस अधिकार को कायम करने की कोशिश कर रही है। इंसानी अधिकार हमारे अस्तित्व और दुनिया में आत्मसम्मान से रहने की गारंटी होते हैं। हमारी भौतिक और आत्मिक सुरक्षा बरकरार रखते हुए लगातार तरक्की में अहम होते हैं। इसके अंतर्गत तमाम अधिकारों की बात कही गयी है लेकिन उन अधिकारों को व्यावहारिक रूप से लागू करना संभव नहीं होता। जैसे बोलने की स्वतंत्रता में आप ऐसा कुछ नहीं बोल सकते जो दूसरे को बुरा लगे।

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाये गए और उनको लागू करने या करवाने के लिए प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन वह सिर्फ कागजी दस्तावेज बन कर रह गए हैं। समाज में मानवाधिकारों के होने वाले उल्लंघन के प्रति अगर मानव ही जागरूक नहीं है तो फिर इनका औचित्य क्या है? देखे तो पता चलेगा की कितने मानवाधिकारों का हनन मानव के द्वारा ही किया जा रहा है। मानव के द्वारा मानव के दर्द को पहचानने और महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है। अगर हमारे मन में मानवता है ही नहीं तो फिर हम साल में पचासों दिन ये मानवाधिकार का झंडा उठा कर घूमते रहें, कुछ भी नहीं किया जा सकता है।

यह कितना दुर्भाग्यपू्र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अन्तरर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का लगातार हनन होता रहता है। (हिफी)

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिफी फीचर)

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