पंजाब में भाजपा ने छीना आप का सांसद
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस बार लोकसभा चुनाव में मिशन 400 पार के लिए उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम भारत में अभेध रणनीति बना रही है। भाजपा की नजर में उत्तर भारत में आम आदमी पार्टी (आप) भी एक बड़ा खतरा नजर आती है। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली पर इस तरह कब्जा जमाया है कि भाजपा के सभी सांसद होते हुए भी विधानसभा में सन्नाटा रहता है। इसके अलावा आप ने दिल्ली के बाद पंजाब में भी सरकार बना ली है। इस तरह यह पार्टी हिन्दी भाषी राज्यों में विस्तार कर रही है। भाजपा पंजाब में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 5.4 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा ने उस समय अकाली दल के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। हालांकि अगले विधानसभा चुनाव अर्थात 2022 में भाजपा अकेले 73 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसको 6.6 फीसद मत मिले थे। इस बार लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ रही है। भाजपा राज्य की सभी 13 लोकसभा सीटों पर अकेले दम ठोंक रही है।
गठबंधन से हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा भी मिला था और उसे 9.63 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार भाजपा का गेम प्लान ज्यादा मजबूत है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल शराब घोटाले के मामले में गिरफ्तार किये जा चुके हैं। उनके डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और एक अन्य मंत्री जितेन्द्र सिंह भी जेल में बंद हैं। इसका असर आप के चुनाव प्रचार पर पड़ रहा है। उधर, पंजाब में आप के इकलौते सांसद सुशील रिंकू को भी भाजपा ने अपने खेमे में कर लिया है। इस प्रकार आम आदमी पार्टी के दोनों किलों को ध्वस्त करने की भाजपा ने रणनीति बनायी है। इस बीच पंजाब में अमरूद घोटाला भी सामने आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) छापेमारी कर रहा है।
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी की नजर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है। बात अगर पंजाब की करें तो यहां पर मुकाबला बहुकोणीय हो गया है। यहां अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल पहले से मौजूद हैं, लेकिन फिर भी बीजेपी पर सबकी खास निगाहें टिकी हैं। यह जानना जरूरी है कि आखिर बीजेपी ने पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया और सीमावर्ती राज्य में उसका गेमप्लान क्या है? यह देखना भी अहम है कि आने वाले दिनों में कई दल-बदल भी देखने को मिलेंगे। पंजाब में 38.5 प्रतिशत की बड़ी आबादी है और बीजेपी यह देखना चाहेगी कि क्या वह उस वोटबैंक को मजबूत कर सकती है।
पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोटशेयर 5.4 प्रतिशत था, उस वक्त उसने अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी ने 73 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा तो वोट शेयर 6.6 फीसद था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में, जब बीजेपी, अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी तो वोट शेयर 9.63 प्रतिशत था।
बीजेपी को उम्मीद है कि वह हिंदू वोट को एकजुट करने के लिए एक बार फिर से राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी, दरअसल पंजाब में यह हिंदू वोट परंपरागत रूप से कांग्रेस को जाता रहा है। राजनीति जानकारों के अनुसार अकाली दल ग्रामीण इलाकों में फिर से उबरने की कोशिश कर रहा हैं, कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है और आप निश्चित तौर पर दो साल पहले मिला जन समर्थन पंजाब में खो चुकी है। ऐसे में सबकी नजरें बीजेपी पर टिकी हैं।
पंजाब में बीजेपी ने जाट सिख नेताओं को पार्टी में शामिल किया है, जिनमें कुछ लोग काफी रसूखदार हैं। पूर्व राजदूत तरनजीत संधू जिनके दादा एसजीपीसी (सिख प्रबंधन निकाय) के संस्थापकों में से थे। मनप्रीत बादल, अमरिंदर, रवनीत सिंह बिट्टू जैसे अन्य नेताओं के जरिए बीजेपी सिख समुदाय में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
किसानों और सिख विरोधी छवि बनाने का प्रयास किया है। किसानों का विरोध, कनाडा में निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप से बीजेपी की सिख विरोधी छवि बनायी है। इस छवि को सुधारना बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। गुरुद्वारों में प्रधानमंत्री मोदी का नियमित दौरा और सिख समुदाय के नेताओं के साथ उनकी बैठकें पंजाब में बीजेपी की छवि को सुधारने का काम कर सकती हैं। दरअसल पंजाब के लोग हमेशा ही नए विकल्प की तलाश में रहते हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन यह भी तय करेगा कि पार्टी के पास पंजाब में अपना जनाधार बढ़ाने की क्षमता है या नहीं। बहरहाल पंजाब के जालंधर से आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद सुशील कुमार रिंकू भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। रिंकू ने पिछले साल जालंधर उपचुनाव में भारी अंतर से जीत हासिल की थी। वह निवर्तमान लोकसभा में आप के एकमात्र सदस्य हैं। आप ने जालंधर से सुशील रिंकू को ही दोबारा उम्मीदवार बनाया था। आप में शामिल होने से पहले वह कांग्रेस में भी रह चुके हैं। साल 2023 में कांग्रेस छोड़ने के अगले ही दिन उन्हें जालंधर संसदीय क्षेत्र से आप उम्मीदवार घोषित किया गया था।
गौरतलब है कि रिंकू 543 सदस्यीय लोकसभा में आप के एकमात्र सांसद थे। सांसद ने कहा कि वह पंजाब के विकास के लिए भाजपा में शामिल हुए हैं, खासकर जालंधर में, और विकास परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाने में कथित उपेक्षा के लिए आप के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर उन्होंने आरोप लगाया। लुधियाना से सांसद और कांग्रेस नेता रवनीत सिंह बिट्टू भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। बिट्टू पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं, जिन्हें राज्य के आतंकवाद विरोधी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। बेअंत सिंह की पद पर रहते हुए ही एक आतंकवादी हमले में हत्या कर दी गई थी।
भ्रष्टाचार पर हमला भाजपा का प्रमुख मुद्दा है। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पंजाब के कई क्षेत्रों में छापेमारी की गई है। जानकारी के मुताबिक ईडी द्वारा ये छापेमारी अमरूद बाग घोटाला मामले में की गई है। इस मामले में विजिलेंस विभाग ने पहले मामला दर्ज किया था और करीब 21 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। यह मामला ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा अधिग्रहित जमीन पर लगे अमरूद के बागों के मुआवजे की आड़ में करीब 135 करोड़ रुपये के गबन से जुड़ा है। सूत्रों के मुताबिक ईडी द्वारा पंजाब के एक्साइज कमिश्नर के घर पर छापेमारी की गई है क्योंकि जिस वक्त ये घोटाला हुआ उस वक्त वो विभाग के चीफ अधिकारी थे। ईडी द्वारा पंजाब के 6 से 8 जिलों में करीब 26 लोकेशन पर यह रेड अभी भी जारी है। इसमें कुछ अधिकारी उनकी पत्नियां और कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। पंजाब के चंडीगढ़ के साथ-साथ भटिंडा, पटियाला, खरड़, बरनाला, मोहाली और फिरोजपुर में भी ईडी की रेड जारी है।
बिजिलेंस ने 2023 में बाकरपुर गांव और मोहाली जिले के कुछ गांवों में कृषि भूमि का अधिग्रहण करके एयरोट्रोपोलिस शहर के विकास के लिए अधिग्रहित भूमि पर स्थित अमरूद के बागों के मुआवजे की आड़ में जारी किए गए लगभग 137 करोड़ रुपये के गबन का मामला दर्ज किया था। जांच के दौरान पता चला कि कुछ लाभार्थी व जमीनों के मालिक जिन्होंने मुआवजे का दावा किया था, पहले से ही ग्रेटर मोहाली क्षेत्र विकास प्राधिकरण से संबंधित अधिकारियों को जानते थे और उन्हें पता था कि किन गांव में भूमि अधिग्रहण किया जाना है। मामले में आरोपियों ने अमरूद के पेड़ों का मूल्य निर्धारण बढ़ाने के लिए पौधों की उम्र 4 या 4 साल से अधिक बताई थी ताकि उन्हें फल देने वाले पेड़ के रूप में आंका जा सके। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)